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________________ नवाँ अध्याय जैन आचार और वर्तमान समस्याएँ . सर्वप्रथम हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि वर्तमान मनुष्य एक ऐसी दुनिया में रह रहा है जो प्राचीन या मध्यकालीनं मनुष्य से अधिक जटिल है। राष्ट्रों में एक-दूसरे पर निर्भरता बढ़ गयी है और उससे गंभीर और व्यापक प्रभाव हमारे अर्थिक, बौद्धिक और सामाजिक स्थितियों पर पड़ा है। विज्ञान ने देशों को एक-दूसरे का पड़ौसी बना दिया है। भिन्न-भिन्न जातियाँ, भिन्न-भिन्न संस्कृतियाँ और भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण एक-दूसरे के निकट आये हैं। प्रस्तुत अध्याय में हम राज्य और समाज का ऐसा दृष्टिकोण रखने का प्रयास करेंगे जो जैन आचारशास्त्र के विचारों से उत्पन्न होता है और हम प्रयास करेंगे उन समस्याओं के समाधान का जो सामाजिक, राष्ट्रिय और अन्तर्राष्ट्रिय महत्त्व की हैं और जो वर्तमान मनुष्य के सम्मुख खड़ी हैं। व्यक्ति और समाज यह कहा जाता है कि जैन आचारशास्त्र केवल आत्मशुद्धि और आत्मविकास की ओर ध्यान देता है। प्रो. मैत्रा का कथन है कि जैन आचार सामाजिक सद्गुणों अर्थात् परोपकारिता, सहयोग और सामाजिक सेवा को सम्मिलित नहीं करता है।" इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि जैन सद्गुण सामाजिक सेवा की अपेक्षा आत्म-उत्थान को महत्त्व देते - 1. The Ethics of the Hindus, P.203 Ethical Doctrines in Jainism TIC Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004208
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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