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________________ इसको प्रमाणित माना जा सकता है यदि व्यक्ति रहस्यात्मक ऊँचाईयों को प्राप्त कर लें किन्तु संभवत: सुकरात का यह अभिप्राय नहीं था । वास्तविक शुभ मनुष्य का शुभ है, यह जैन दृष्टिकोण से उचित है। उच्चतम शुभ आध्यात्मिक होता है और अनुचित क्रियाएँ आध्यात्मिक विकास को अवरुद्ध करती हैं। सुकरात के पंथ सुकरात की नीतिशास्त्र की बहुमुखी दृष्टि के कारण एक-दूसरे से विराधी पंथ उत्पन्न हुए जो सिनिक और सिरेनैक के नाम से प्रसिद्ध हुए। दोनों पंथ मानवीय कल्याण को उच्चतम शुभ मानते हैं किन्तु उनमें कल्याण के विषय को लेकर भेद है। सिनिक का कहना है जीवन का आदर्श सारी इच्छाओं को समाप्त करना है और सब प्रकार के परिग्रह और आवश्यकताओं से स्वतंत्र होना है। वह पूर्ण संन्यास और कठोर तपस्या को प्रस्तावित करता है | सिरेनैक्स ने सर्वाधिक सुख की प्राप्ति पर जोर दिया यद्यपि उन्होंने शारीरिक सुखों की प्रशंसा की किन्तु ये इन्द्रिय भोग और पशुता से बचे क्योंकि उन्होंने कहा कि शुभ के चुनाव में बुद्धि का उपयोग आवश्यक है। बुद्धिमान व्यक्ति आत्मसंयम विकसित करता है तथा अधिक सुख और कम दुःख का चुनाव करता है। जैन दृष्टिकोण से सिनिक का आदर्श प्राप्त नहीं किया जा सकता। जब तक आत्मा - स्थिर न हो मात्र निषेध कहीं नहीं ले जाता है। अंतरंग और बाह्य अपरिग्रह बिना आध्यात्मिक स्वामित्व के प्राप्त नहीं किया जा सकता। सिनिक ने व्यक्तिगत शुभ का सामाजिक सुख से सामंजस्य नहीं किया। जैन दृष्टिकोण से गृहस्थ का जीवन और मुनि का जीवन व्यक्ति के उत्थान के लिए संतुलन रखता है। कोरा अहंवाद आत्मघाती है किन्तु आध्यात्मिक अहंवाद सामाजिक शुभ से संगत है। Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only (67) www.jainelibrary.org
SR No.004208
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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