SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ का कोई एक अर्थ नहीं है यद्यपि इसका इतिहास बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसका विभिन्न प्रकार से प्रयोग हुआ है और इसकी व्याख्या विभिन्न प्रकार से की गयी है। 'रहस्यवाद' की विभिन्न अभिव्यक्तियों और व्याख्याओं पर विचार करना हमारा उद्देश्य नहीं है । विभिन्न प्रकार के अर्थ होते हुए भी उनमें भिन्नता से अधिक सामंजस्य है। प्रो. रानाडे का कथन उचित प्रतीत होता है - "विभिन्न युगों और देशों के रहस्यवादी एक दिव्य समाज का निर्माण करते हैं। " 2 " वहाँ कोई जातिगत, साम्प्रदायिक और राष्ट्रीय पूर्वाग्रह नहीं है। रहस्यवादी अनुभव जो शाश्वत और अनन्त होता है उसका देश व काल से कोई संबंध नहीं है । " " " रहस्यवाद का ताना-बाना किसी भी तत्त्वज्ञानरूपी धागों से बुना जा सकता है लेकिन रहस्यवादी हमेशा शब्दों से परे जाते हैं और एकता का अनुभव करते हैं । ' "4 जैनधर्म में 'रहस्यवाद' का समानार्थक शब्द 'शुद्धोपयोग' है। कुन्दकुन्द के अनुसार बहिरात्मा को छोड़ने के पश्चात् अन्तरात्मा के द्वारा लोकातीत आत्मा की अनुभूति रहस्यवाद है अर्थात् बहिरात्मा को छोड़ने के पश्चात्' अन्तरात्मा के द्वारा परमात्मा की परा-नैतिक अवस्था को प्राप्त करना रहस्यवाद है । अन्तरात्मा बहिरात्मा को आवश्यक रूप से त्याग देता है जिसके फलस्वरूप ध्यान और दूसरे नैतिक साधनों के माध्यम से परमात्मा में रूपान्तरण हो जाता है। । कुन्दकुन्द का अनुसरण 2. Mysticism in Mahārāstra, Preface, P. 1 3. Pathway to God in Hindi Literature, P.2 4. परमात्मप्रकाश, भूमिका, पृष्ठ 26 5. मोक्षपाहुड, 4, 7 (62) Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004207
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy