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________________ परिणाम है। सम्पूर्ण आचारशास्त्र जो गृहस्थ और मुनि के लिए निर्धारित है वह व्यवहार में अहिंसा के रूपान्तरण के लिए प्रतिपादित है, जिसकी पूर्णता रहस्यात्मक अनुभूति में उद्घाटित होती है। इस तरह से आचारशास्त्र के स्रोत का संबंध यदि तत्त्वमीमांसा से घनिष्ठ है तो उसका रहस्यवाद से भी संबंध कम नहीं है। यह बताना अनुपयुक्त नहीं होगा कि आचारशास्त्र तात्त्विक चिंतन और रहस्यात्मक अनुभूति के बीच की कड़ी है। यह तत्त्वज्ञान (Metaphysics) से रहस्यवाद (Mysticism) की ओर मार्ग प्रशस्त करता है। बुद्धि (Intellect) से अन्तर्दृष्टि (Intuition) की ओर यात्रा आचार के माध्यम से सम्पन्न की जाती है। प्रो. रानाडे का कथन इस दृष्टि से बहुत महत्त्व का है- “जिस प्रकार बुद्धि (Intellect), संकल्प (Will) और भाव (Emotion) उच्चतम मनोवैज्ञानिक विकास में एक दूसरे से अलग नहीं किये जा सकते उसी प्रकार तत्त्वमीमांसा (Metaphysics), आचार (Ethics) और रहस्यवाद (Mysticism) उच्चतम आध्यात्मिक विकास में एक दूसरे से अलग नहीं किये जा सकते हैं।" अब हम रहस्यात्मक जीवन के लिए जैन आचार के महत्त्व को समझाने का प्रयास करेंगे और उसकी आध्यात्मिक क्षेत्र में अन्तःशक्ति को ध्यान में रखते हुए आध्यात्मिक विकास के चौदह गुणस्थानों पर विचार करेंगे, जैसा कि जैनाचार्यों द्वारा प्रतिपादित किया गया है। रहस्यवाद का स्वरूप गुणस्थानों के स्वरूप के बारे में विचार करने से पहले हम रहस्यवाद के स्वरूप पर विचार करेंगे। ऐसा करने से हम जैन आचार की धारणा का उचित मूल्यांकन करने में समर्थ हो सकेंगे। 'रहस्यवाद' शब्द 1. Constructive Survey of Upanisadic philosophy, P.288 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (61) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004207
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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