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________________ कमजोर करता है । यद्यपि वह सावधानी रखता है कि उसकी अंतरंग शान्ति में बाधा न आये | 229 शरीर को कमजोर करने की सभी प्रकार की विधियों में से दो दिन का उपवास, तीन दिन का या पाँच दिन का उपवास और फिर हलका भोजन करना प्रशंसनीय माना गया है | 230 इसके साथ ही मुनि के लिए आवश्यक है कि वह क्षमा से क्रोध को, विनय से मान को, निष्कपटता से मायाचार को और संतोष से लोभ को दूर करे | 23" उसी प्रकार हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, कामुक प्रवृत्तियाँ और आहार, भय, कामवासना और परिग्रह, तीन अशुभ लेश्याएँ अर्थात् कृष्ण, नील और कापोत तथा अलौकिक शक्तियों के प्रति आसक्ति - उन सबको हटा देना चाहिए | 232 यह सम्पूर्ण प्रक्रिया सतत जारी रहती है जब तक शरीर से आत्मा पृथक् नहीं हो जाता है। आचार्यों के द्वारा मुनि आध्यात्मिक वातावरण में रखा जाता है जिससे मृत्यु के समय भाव न बिगड़ जाये । (ii) इंगिनी -मरण इंगिनी -मरण का पालन करना भक्तप्रतिज्ञा - मरण से ज्यादा कठिन है। यह उन मुनियों के लिए है जिनके पास उत्तम शरीर है। वह ऐसे स्थान पर जाता है जो प्राणियों से रहित हो, सूर्य की रोशनी से प्रकाशित हो और वहाँ छिद्र आदि न हो । वहाँ वह प्राणियों से रहित घास के बिछौने पर लेट जाता है या बैठ जाता है या खड़ा रहता है। 233 जब वह अपने मन में से द्वेष विचार निकाल देता है और दर्शन, ज्ञान और 229. भगवती आराधना, 207, 208, 246-248 230. भगवती आराधना, 250, 251 231. भगवती आराधना, 260 232. भगवती आराधना, 268 233. भगवती आराधना, 2035 2036, 2041 (58) Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004207
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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