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________________ 152 पर जोर देता है। इसके अतिरिक्त बाह्य तप इसलिए भी बाह्य तप कहे जाते हैं कि वे उनके द्वारा भी पालन किए जाते हैं जो सम्यग्दृष्टि नहीं हैं। 153 हम सर्वप्रथम बाह्य तपों के बारे में विचार करेंगे। बाह्य तप बाह्य तप छह प्रकार के होते हैं- (1) अनशन, (2) अवमौदर्य, (3) वृत्तिपरिसंख्यान, (4) रसपरित्याग, (5) विविक्तशय्यासन और (6) कायक्लेश | 154 (1) अनशन - उपवास या सीमित समय के लिए या शरीर से आत्मा के पृथक्करण होने तक भोजन का संयम अनशन कहलाता है।'' इसका पालन आत्मनियंत्रण के लिए, आसक्ति को नष्ट करने के लिए, कर्मों के विनाश के लिए, ध्यान का पालन करने के लिए और आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए किया जाता है। 156 यहाँ यह ध्यान देना चाहिए कि अनशन में भोजन और उसके प्रति आसक्ति का त्याग एक साथ किया जाना अपेक्षित है। केवल शरीर को क्षीण करना उपवास का उद्देश्य नहीं होता है। 157 (2) अवमौदर्य पूरा भोजन नहीं 152. सर्वार्थसिद्धि, 9/19 153. षट्खण्डागम, भाग-13, पृष्ठ 59 अनगार धर्मामृत, 7/6 154. तत्त्वार्थसूत्र, 9/19 भगवती आराधना, 208 मूलाचार, 346 155. मूलाचार, 347 उत्तराध्ययन, 30/9 भगवती आराधना, 209 156. सर्वार्थसिद्धि, 9/19 157. षट्खण्डागम, भाग-8, पृष्ठ 55 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त Jain Education International - For Personal & Private Use Only (41) www.jainelibrary.org
SR No.004207
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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