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परीषह को जीतनेवाला कहा जाता है। नग्नता- जो मुनि जन्मजात बच्चे की तरह नग्न रहता है और जिसका हृदय कामातुर भावों से ग्रसित नहीं होता और जो ब्रह्मचर्य का पालन करता है वह नग्नता परीषह को जीतता है। 49 अरति- जो मुनि इन्द्रियों के दमन से, रोगों से, दुष्ट व्यक्तियों के व्यवहार से परेशान नहीं होता वह अरति परीषह को जीतनेवाला कहा जाता है। स्त्री- जो मुनि कामातुर स्त्रियों के हाव-भाव से भ्रमित नहीं होता वह स्त्री परीषह को जीतनेवाला कहलाता है। चर्या- जो मुनि प्रस्तावित नियमों के अनुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर गमन करते हुए काँटों आदि के दुःख से विचलित नहीं होता है वह चर्या परीषह को जीतनेवाला कहा जाता है। निषद्या- जो मुनि शमशान में या सूनसान घरों में या गुफा में बैठता है और वहाँ शेर की गर्जना से भी भयभीत नहीं होता है, जो कठिन आसनों का अभ्यस्त होता है उसने निषद्या परीषह को जीत लिया है। शय्या- जो मुनि अनवरत स्वाध्याय और ध्यान करके सोने के लिए उबड़-खाबड़ स्थान प्राप्त करता हैं तो भी जिसका चित्त व्याकुल नहीं होता है वह शय्या परीषह को जीतनेवाला कहा जाता है। आक्रोश- जो मुनि मनुष्यों के दुर्व्यवहार के प्रति उदासीन रहता है और मानसिक रूप से अशान्त नहीं होता है उसने आक्रोश परीषह को जीत लिया है। वध- जो मुनि अपनी शांत अवस्था को शरीर के काटे जाने पर भी नहीं खोता है उसके वध परीषह-जय होता है। याचना- जो मुनि भोजन, दवा, आवास आदि नहीं माँगता चाहे उसके प्राण नष्ट हो जाएँ तो उसने याचना परीषह को जीत लिया है। अलाभ- अलाभ परीषह को जीतना उस समय कहा जाता है जब मुनि गृहस्थ से भोजन न मिलने पर मानसिक शांति को बनाए रखता है।
149. सर्वार्थसिद्धि, 9/9
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