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________________ जानी चाहिए।106 केशलोंच उपवास का पालन करके दिन में करनी चाहिए।107 ऐसा करने से संसार से अनासक्ति उत्पन्न होती है, आत्मसंयम बढ़ता है और मुनि व्याकुलता से मुक्त हो जाता है।108 षट् आवश्यक षट् आवश्यकों का आध्यात्मिक जीवन से सीधा संबंध होता है। निःसन्देह अन्य मूलगुण भी मुनि के जीवन से संबंधित होते हैं किन्तु वे परोक्ष रूप से उसके जीवन पर प्रभाव डालते हैं। षट् आवश्यकों को सफलतापूर्वक पालने के लिए उनको भी अनिवार्य समझा जाना चाहिए। एक अर्थ में सभी मूलगुण समान है किन्तु मूलगुणों के उन घटकों पर जोर दिया जाना न्यायसंगत है जिनमें आन्तरिक यात्रा निहित होती है क्योंकि आध्यात्मिक जीवन में आन्तरिक परिवर्तन अत्यन्त महत्त्व का होता है। इस प्रकार ‘आवश्यक' मुनि के जीवन को रूपान्तरित करने के लिए समर्थ होते हैं और वे उसके जीवन के उद्देश्य का उसको स्मरण कराते - जो मुनि अपनी आत्मानुभूति के द्वारा शुभ और अशुभ विचारों की पराश्रितता को अस्वीकार करता है वह निश्चयनय से 'आवश्यक' 106. मूलाचार, 29 . अनगार धर्मामृत, 9/86, 97 भगवती आराधना, 88, 89 आचारांग, पृष्ठ 189 आचारसार, 1/43 107. मूलाचार, 29 108. मूलाचार, 29 भगवती आराधना, 91 आचारसार, 1/4 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (29) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004207
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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