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________________ के लिए भरा जाता है। इस प्रकार मुनि निर्दोष भोजन प्राप्त करके भी नहीं किये हुए की तरह ही होता है। इस तरह वह कर्मों की दासता का शिकार नहीं होता है। (iv) आदाननिक्षेपणसमिति- आदाननिक्षेपणसमिति का अर्थ है- धार्मिक जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं को उठाने और रखने में सावधानी की मानसिक स्थिति को बनाए रखना।101 इसका अर्थ है वस्तुओं को उठाने व रखने से पहले वस्तु और स्थान को आँखों से देख लेना।102 (v) प्रतिष्ठापनासमिति- प्रतिष्ठापनासमिति प्रस्तावित करती है कि मुनि को ऐसे स्थान पर मल-मूत्रादि का त्याग करना चाहिए जो मनुष्यों द्वारा स्वीकृत हो, आपत्तिजनक न हो,103 प्राणियों से रहित हो, एकान्त हो, छिद्र रहित हो और जीव-जन्तु व बीजरहित हो। पाँच इन्द्रियों का नियंत्रण - यह स्पष्ट तथ्य है कि इन्द्रिय-विषयों के प्रति आसक्ति आध्यात्मिक मार्ग में कठिनाइयाँ उत्पन्न करती है अतः इसका उन्मूलन करने की आवश्यकता है। यह सच है कि मुनि के द्वारा किया गया इन्द्रियों का नियंत्रण नया कार्य नहीं है, क्योंकि वह गृहस्थ-अवस्था में अणुव्रतों का पालन कर ही रहा था किन्तु उच्चजीवन में अपूर्व प्रवेश नये . . कठोर उत्तरदायित्व उत्पन्न करता है। इस तरह मुनि पाँचों इन्द्रियों को 101. नियमसार, 64 मूलाचार, 14 102. मूलाचार, 319 उत्तराध्ययन, 24/14 103. नियमसार, 65 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (27) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004207
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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