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पाँचवाँ अध्याय मुनि का आचार
पूर्व अध्याय (प्रथम खण्ड का चतुर्थ अध्याय) का संक्षिप्त विवरण
प्रथम खण्ड के चतुर्थ अध्याय में हमने गृहस्थ के आचार का वर्णन किया है। प्रथम, हमने यह बताया है कि गृहस्थ अशुभ मनोभावों को पूर्णतया हटाने में असमर्थ होता है। द्वितीय, हमने हिंसा, असत्य, स्तेय, अब्रह्मचर्य और परिग्रह के स्वरूप का वर्णन किया है और इससे गृहस्थ के आंशिक व्रतों (अणुव्रतों) के क्षेत्र को जानने का प्रयास किया है। तृतीय, मूलगुणों की विभिन्न धारणाओं का सर्वेक्षण करने के साथ ही रात्रि-भोजन की समस्या पर भी विचार प्रस्तुत किया गया है। चतुर्थ, सात शीलव्रतों के स्वरूप और उनकी विभिन्न प्रकार से की गई व्याख्या का निरूपण किया गया है। पाँचवाँ, उपर्युक्त व्रतों से प्रतिमाओं का सामञ्जस्य स्थापित करने के पश्चात् ग्यारह प्रतिमाओं की धारणा का वर्णन किया गया है। छठा, पक्ष, चर्या और साधन के आधार से गृहस्थ के आचार का प्रतिपादन करते हुए मूलगुणों की धारणाओं, बारह व्रतों, ग्यारह प्रतिमाओं और सल्लेखना को इन तीनों में सुव्यवस्थित रूप से सम्मिलित किया गया है। अंत में, सल्लेखना (मृत्यु का आध्यात्मिक स्वागत) का आत्मघात से भेद करने के पश्चात् उसके स्वरूप और उसकी प्रक्रिया को बताया गया है। मुनिधर्म क्रियाओं से नहीं बल्कि हिंसा से पीछे हटना है .. गृहस्थ के आचार का उद्देश्य आंशिक रूप से हिंसा को कम करना है लेकिन मुनि के आचार का उद्देश्य अंतिम अवस्था तक हिंसा
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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