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________________ एक प्रश्न पूछा जा सकता है कि अरिहंतों ने जब सब घातिया कर्म नष्ट कर दिये हैं और संदेहों से रहित हो गये हैं तो वे किस का ध्यान करते हैं? 210 इसका उत्तर यह कहकर दिया जा सकता है कि अरिहंत जो पूर्ण हो चुके हैं और अतीन्द्रिय हैं, आनन्द का ध्यान करते हैं। कुन्दकुन्द के अनुसार अरिहंत जिन्होंने राग, द्वेष नष्ट कर दिया है और अनासक्ति प्राप्त कर ली है, वे आत्मा में स्थित होते हैं, वे असीम आनन्द प्राप्त करते हैं । 21 उनकी चेतना अन्तर्दृष्ट्यात्मक, आनन्दपूर्ण और सर्वशक्तिमान होती है। हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि अरिहंत का रहस्यात्मक अनुभव अवर्णनीय और अनुपम होता है । 212 'पावन' श्रेणी के रूप में अरिहंत 214 अरिहंत में जो अवर्णनीय तत्त्व है वह इस बात का द्योतक है कि अरिहंत का सार-स्वरूप बौद्धिक धारणाओं में समाप्त नहीं किया जा सकता है। यह अर्हत् का प्रकाशमान 213 पहलू है जो तार्किक या नैतिक समझ से परे होता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि अर्हत् पूर्णतया 'लोकभिन्न' (Wholly other) हैं। यह इस बात को बताता है कि “देव का पहलू बहुत रहस्यात्मक है और उसे मानवीय माप से व्यक्त नहीं किया जा सकता । " 215 इसी कारण से बुद्धि निषेधात्मक अभिव्यक्तियों का सहारा लेती है। यद्यपि अभिव्यक्तियाँ निषेधात्मक होती हैं किन्तु जिस ओर वे संकेत करती हैं वे स्वीकारात्मक होती हैं, वे जीवन्त 210. प्रवचनसार, 2 /105 211. प्रवचनसार, 2 / 103, 104 212. ज्ञानार्णव, 42/76, 77, 78 213. Idea of the Holy, P.5, 6, 7 214. Idea of the Holy, P.25 215. Idea of the Holy, Preface, P.18 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only (109) www.jainelibrary.org
SR No.004207
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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