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है।182 इसका कारण यह है कि एक अन्तर्मुहूर्त के पश्चात् दमित कषाय शक्ति प्राप्त कर लेती है और रहस्यवादी को दुःखद परिणाम भोगने होते हैं। आत्मा दुःखपूर्ण अवस्था में पहुँच जाता है और वह अंधकार - काल कहा जाता है।'83 क्षायिक सम्यग्दृष्टि के द्वारा अनुभूत अंधकार काल इतना गंभीर नहीं होता जितना उपशम सम्यग्दृष्टि के द्वारा अनुभव किया जाता है क्योंकि परवर्ती पहले गुणस्थान में गिर जाता है और पूर्ववर्ती चौथे गुणस्थान से नीचे नहीं जाता है।
यहाँ यह जानना आवश्यक है कि सभी रहस्यवादी इस अंधकारकाल का अनुभव नहीं करते हैं। जो क्षपक श्रेणी चढ़ते हैं वे अंधकार काल से बच जाते हैं और तुरन्त लोकातीत जीवन को अनुभव करने में समर्थ हो जाते हैं, किन्तु जो उपशम श्रेणी चढ़ते हैं वे इस जीवन से वंचित हो जाते हैं। यद्यपि वे रहस्यवादी भी आवश्यकरूप से उतनी ही ऊँचाई पर पहुँच जायेंगे किन्तु उन्हें इस जीवन में या आगामी जीवन में क्षपक श्रेणी चढ़ना होगा । वास्तव में उस आत्मा ने जिसने एकबार आध्यात्मिक रूपान्तरण प्राप्त कर लिया है वह अनिवार्यरूप से पवित्र जीवन का अधिकारी हो गया है। प्रश्न केवल समय का है, निश्चितता का नहीं।
संक्षेप में कुछ आत्माएँ तीन प्रकार का अंधकार अनुभव करती हैं। प्रथम - जाग्रति से पूर्व, द्वितीय- जाग्रति के पश्चात्, तृतीय उपशम श्रेणी चढ़ने के कारण। प्रथम में, आत्मा को अपने अंधकार का भान नहीं होता है। द्वितीय में, आध्यात्मिक जागरण से गिरना सचेतन रूप से नहीं पहचाना जाता है। तृतीय में, उच्च अवस्था प्राप्त करने के पश्चात्
182. लब्धिसार, 344, 345
183. Mysticism, P.382
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Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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