SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग के रूप में सोलह प्रकार की भावनाएँ रहस्यवादी के द्वारा अलौकिक जगत की नागरिकता प्राप्त की जा सके- इसके लिए उसको ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग का त्रिरंगी झण्डा जो सम्यग्दर्शन रूपी डण्डे के सहारे है, उसके प्रति पूर्ण निष्ठा रखनी चाहिए। तीन रंगों में से प्रथम, स्वाध्याय के द्वारा प्राप्त आध्यात्मिक ज्ञान को इंगित करता है, द्वितीय, चारित्र जिसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के व्रतों और तपों को पालना सम्मिलित है, तृतीय, धार्मिक विनम्रता जो अरिहंत और सिद्ध की भक्ति से उत्पन्न होती है और सम्यग्दर्शन (आत्मजाग्रति) रूपी डण्डा सहारे के रूप में होता है। सोलह प्रकार की भावनाएँ।53 जो ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग के रूप में होती हैं वह बुद्धि, संकल्प और हृदय को एक साथ सन्तुष्ट करती हैं उनसे आत्मा में पुण्य की प्राप्ति इस हद तक होती है कि साधक तीर्थंकर बन सकता हैं उसी जीवन में या आगामी जीवन में। अभीक्ष्णज्ञानोपयोग154 ज्ञानयोग को बताता है। शीलव्रतेष्वनतीचार,155 संवेग,156 शक्तितस्तप'57 और आवश्यकापरिहार'58 कर्मयोग के व्यक्तिगत पक्ष के अन्तर्गत सम्मिलित हैं। शक्तितस्त्याग,159 प्रवचन153. तत्त्वार्थसूत्र, 6/24 154. अभीक्ष्णज्ञानोपयोग का अर्थ है अनवरत रूप से अपने आपको आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति में लगाना। 155. व्रतों का पालन और उनके पालन के लिए कषायों का त्याग शीलव्रतेष्वनतीचार 156. सांसारिक दःखों से भयभीत होना संवेग है। 157. अपनी शक्ति को छुपाये बिना शारीरिक तप करना शक्तितस्तप है। 158. छह आवश्यकों को करना आवश्यकापरिहार है। . 159. आहार, सुरक्षा और ज्ञान में उदार होना शक्तितस्त्याग है। Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (97) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004207
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy