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ज्ञान की साधना। यद्यपि यह मुख्य रूप से बौद्धिक होती है फिर भी यह परमात्मा (अरिहंत और सिद्ध) के प्रति हमारी भक्ति जगाने में समर्थ है। भक्ति का महत्त्व
कुन्दकुन्द के अनुसार वह जो जिनचरणों में भक्तिपूर्वक झुकता है वह संसार की जड़ को नष्ट करता है।147 पूज्यपाद घोषणा करते हैं कि व्यक्ति अर्हत् और सिद्ध के प्रति भक्ति से अपने आपको परमात्म अवस्था में रूपान्तरित कर सकता है।148 वादिराज मुनि निरूपण करते हैं कि अगाध बौद्धिकता और निष्कलंक नैतिकता होते हुए भी मोक्षरूपी महल का दरवाजा जिस पर मोह का ताला है उसको भक्तिरूपी चाबी के बिना साधक खोलने में असमर्थ होता है।149 यद्यपि परमात्मा ने प्रशंसा और निंदा के द्वैत को पार कर लिया है फिर भी उसकी प्रशंसा के गीत भक्त के पापों को नष्ट कर देते हैं।150 परमात्मा का गुणरूपी समुद्र शब्दों के जहाज द्वारा पार नहीं किया जा सकता है फिर भी निश्चित है कि क्षणभर की भक्ति भी आत्मा को शुद्ध कर सकती है। 51 समन्तभद्र का कहना है कि लोहा पारस पत्थर के स्पर्श से सोना बन जाता है उसी प्रकार भक्त एक प्रभावशाली व्यक्तित्व में बदल जाता है।152
147. भावपाहुड, 153 148. समाधिशतक, 97 149. एकीभाव स्तोत्र, 13 150. स्वयंभू स्तोत्र, 57
एकीभाव स्तोत्र, 2
भक्तामर स्तोत्र, 7 151. जिनशतक, 59
स्वयंभू स्तोत्र, 86, 87 152. जिनशतक, 60
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Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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