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________________ चाहिये। इसके अतिरिक्त वे मेरुपर्वत की तरह अटल होते हैं, पृथ्वी की तरह सहनशील होते हैं, सात प्रकार के भय से रहित होते हैं और समुद्र की तरह शुद्ध होते हैं। उपाध्याय और साधु की विशेषताएँ उपाध्याय में आचार्य की सभी विशेषताएँ होती हैं सिवाय दीक्षा देने के और शिष्यों के दोषों को ठीक करने के उपाध्याय की विशिष्ट विशेषता गंभीर अध्ययन करके आध्यात्मिक विषयों पर प्रवचन करना . है। वे केवल प्रवचन दे सकते हैं, आचार्य की तरह आदेश नहीं दे सकते हैं। साधु वे होते हैं जो नैतिक और आध्यात्मिक नियमों का पालन करते हैं किन्तु आचार्य और उपाध्याय की तरह कोई विशिष्ट कार्य नहीं करते हैं। इस तरह से यह स्पष्ट है कि आचार्य के जीवन में उपाध्याय और साधु के आचरण सम्मिलित हैं। इस दृष्टिकोण से यह कहना अनुचित नहीं होगा कि आचार्य का स्थान अरिहंतों के पश्चात् है जो आध्यात्मिक जीवन की रक्षा और उसकी अनवरतता का कार्य करते हैं। आध्यात्मिक रूपान्तरण या आत्मजाग्रति (सम्यग्दर्शन) सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति उन महान आत्माओं के उपदेश से होती है जिन्होंने दिव्यता का अनुभव कर लिया है या जो आत्मानुभव के मार्ग पर हैं। यह सम्यग्दर्शन उपदेश के कारण दर्शनमोहनीय कर्म के उपशम से उत्पन्न होता है, यह ऐसा ही है जैसे अकस्मात् जन्मान्ध को आँखें मिल 66. षट्खण्डागम, भाग-1, पृष्ठ 49 67. षट्खण्डागम, भाग-1, पृष्ठ 49 68. षट्खण्डागम, भाग-1, पृष्ठ 50 69. षट्खण्डागम, भाग-1, पृष्ठ 50 (80) Ethical Doctrines in Jainism $787€ À 3 Termite Glas Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004207
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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