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________________ दो इन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के संसारी जीव दो इन्द्रिय जीवों के छह प्राण होते हैं अर्थात् एकेन्द्रिय जीव के चार प्राणों के अतिरिक्त दो प्राण और अधिक होते हैं- रसना इन्द्रिय और वचन बल। तीन इन्द्रिय जीवों में घ्राण इन्द्रिय अधिक होती है। चार इन्द्रियवाले जीवों में इनके अतिरिक्त चक्षु इन्द्रिय अधिक होती है और अंतिम, पंचेन्द्रिय जीव जो असंज्ञी (मनरहित) हैं उनके कर्ण इन्द्रिय अतिरिक्त होती है और जिनके मन होता है उनके सभी दस प्राण होते हैं।109 इस प्रकार एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के जीवों के प्राणों की संख्या क्रमशः चार, छह, सात, आठ, नौ और दस होती है। दो इन्द्रिय जीव हैंघोंघा, सीप, शंख, केचुआँ10 आदि; तीन इन्द्रिय जीव हैं- नँ, खटमल, चीटी11 आदि; चार इन्द्रिय जीव हैं- डांस, मच्छर, मक्खी, मधुमक्खी, भ्रमर, पतंगा, तितली112आदि; पंचेन्द्रिय जीव- देव, नारकी, मनुष्य और कुछ तिर्यंच जीवों के दस प्राण होते हैं। 13 चार इन्द्रियों तक सभी संसारी जीव असंज्ञी (मनरहित) होते हैं। पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीव संज्ञी (मनसहित) और असंज्ञी (मनरहित) हो सकते हैं। देव, नारकी और मनुष्य अनिवार्यरूप से संज्ञी (मनसहित) होते हैं।14 संज्ञी (मनसहित) जीव उपदेश श्रवण की योग्यता होने से, निर्देशन प्राप्त करने की योग्यता होने से और ऐच्छिक क्रियाएँ करने की योग्यता होने से पहचाने जाते हैं।115 . . 109. सर्वार्थसिद्धि, 2/14 110. पञ्चास्तिकाय, 114 .111. पञ्चास्तिकाय, 115 112. पञ्चास्तिकाय, 116 113. पञ्चास्तिकाय, अमृतचन्द्र की टीका, 117 114. पञ्चास्तिकाय, अमृतचन्द्र की टीका, 117 115. गोम्मटसार जीवकाण्ड, 660 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (41) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004206
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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