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________________ भौतिकवाद और आत्मवाद दो अतियाँ जीव और पुद्गल को द्रव्यों के रूप में स्वीकार करने से जैनदर्शन भौतिकवाद और आत्मवाद की दो अतियों को निरस्त कर देता है, जो मूलत: एक दूसरे के विरुद्ध हैं। भौतिकवाद विचार करता है कि विश्व की जड़ में पुद्गल है, जब कि आत्मवाद विचार करता है कि मन या आत्मा आधारभूत और प्रमुख है। भौतिकवाद पुद्गल की वास्तविकता की मान्यता पर बल देता है और आत्मा को एक घटना या संलग्न वस्तु विचारता है। आत्मवाद निश्चयपूर्वक कहता है कि मन या आत्मा को वास्तविक गिना जाना चाहिए, पुद्गल केवल एक आभास है। किन्तु जैनदर्शन के अनुसार पुद्गल और आत्मा समान रूप से सत्य है और इनमें से एक को न्यायसंगत उसी समय माना जायेगा जब अनुभव को उसके महत्त्व से वंचित कर दिया जाय। द्रव्यों का सामान्य स्वभाव छह द्रव्य परस्पर में अन्तर्व्याप्त होते हुए भी वे कभी भी मूल स्वभाव को नहीं छोड़ते। यह कथन इस तथ्य का संकेत करता है कि ये द्रव्य अपनी निश्चित संख्या, जो छह है, उसका अतिक्रमण करने में असमर्थ है, इसलिए उनका घटना और बढ़ना असंभव है।43 एकमात्र काल द्रव्य के अपवादसहित, शेष पाँच द्रव्य पंचास्तिकाय कहलाते हैं। उसका कारण है कि उनके कई प्रदेश होते हैं। 'काय' शब्द केवल बहुत 42. पञ्चास्तिकाय, 7 43. सर्वार्थसिद्धि, 5/4 44. पञ्चास्तिकाय, अमृतचन्द्र की टीका, 22 पञ्चास्तिकाय, 102 प्रवचनसार, 2/43 Niyamasāra, 34 · The space occupied by one atom is called a Pradeśa. Ethical Doctrines in Jainism off # 3 Taksite falan (27) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004206
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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