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________________ "कहने का अभिप्राय यह है कि उनमें से एक भी दूसरे के बिना नहीं पाया जाता है। इन दोनों का संबंध समकालिकता का होता है। इनका संबंध 15 समय में पहले और पीछे का नहीं है। " " दूसरे शब्दों में, “द्रव्य और गुण मैं संबंध समकालिक अभेद, एकता, अपृथक्ता और सारभूत सरलता का है। द्रव्य और गुण में एकता संयोग का परिणाम नहीं है । ' 16 द्रव्य और पर्याय 17 पर्याय विशेषतया जैनदर्शन की ही परिकल्पना है ।" द्रव्य के स्वभाव · के अनुसार परिवर्तनशीलता (अनित्यता) में नित्यता रहती है। पर्याय एक वस्तु की परिवर्तनशीलता की ओर इंगित करती है जो बाह्य और अंतरंग कारणों से उत्पन्न होती है। द्रव्य और पर्याय में दो भिन्न वस्तुओं की तरह भेद नहीं किया जाना चाहिए और यह द्रव्य, गुणों के जरिये अपने परिवर्तनशील स्वभाव के कारण पर्यायी कहलाता है। द्रव्य और पर्याय न तो अभेदात्मक हैं और न ही भिन्न हैं, किन्तु उन दोनों में संबंध अभेद-में-भेद का है जो कि पूर्णतया जैनदर्शन के द्वारा समर्थित अनिरपेक्षवादी दृष्टिकोण से सामंजस्य रखता है। इस तरह से उत्पत्ति (उत्पाद) और विनाश (व्यय) पर्यायों पर लागू होता है और स्थायित्व (ध्रौव्य) द्रव्यसहित गुणों पर लागू होता है। कुन्दकुन्द के अनुसार कोई भी द्रव्य पर्याय के बिना नहीं होता और पर्याय बिना द्रव्य के नहीं होती है । 18 गुण और पर्याय द्रव्य के गुणों का सारभूत स्वभाव परिवर्तनशीलता के होते हुए 15. Epitome of Jainism, P. 24 16. Indian Philosophy, Vol. I., P.314 17. प्रवचनसार, प्रस्तावना, P. LXVI 18. पञ्चास्तिकाय, 12 (20) Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004206
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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