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के नाम से प्रयुक्त होता है। महावीर ने 72 वर्ष की आयु में 527 ई. पू. पावा में निर्वाण प्राप्त किया।"31 केवलज्ञान की उपलब्धि के बाद उनके लिए कहा जाता है कि उन्होंने प्रथम वर्षाकाल अस्थिकाग्राम में, तीन वर्षाकाल चम्पा में, बारह वर्षाकाल वैशाली और वणियगाम में, चौदह रायगिह और उपनगर नालन्दा में, छह मिथिला में, दो भदिया और एक अलभिया में, एक पणियभूमि में, एक सावत्थी में, एक पावा नगर में व्यतीत किया।2"कुछ क्षेत्रों के पहचान से ऐसा ज्ञात होता है कि उनके प्रभाव का क्षेत्र लगभग बिहार के आधुनिक प्रदेश और बंगाल व उत्तरप्रदेश का कुछ भाग रहा।"33 “वे हमें उन देशों की सन्तोषजनक सूचना देते हैं जिनमें उन्होंने धर्म को प्रचारित करने के लिए भ्रमण किया लेकिन हमें यह याद रखना चाहिये कि यह सूची न तो सर्वाङ्गपूर्ण है न ही कालानुक्रमिक, यद्यपि 42 वर्ष के अपने यात्रा वृत्तान्त का स्थूल रूप से विवरण देती है।''34 जैन ग्रंथों के अनुसार कई राजा, रानियाँ, राजकुमार, राजकुमारियाँ, मंत्री और व्यापारियों ने महावीर को गुरु के रूप में स्वीकार किया।
अब हम जैनधर्म में विशेषतया दो सम्प्रदाय दिगम्बर व श्वेताम्बर के बारे में संक्षेप में विचार करेंगे। इन दो सम्प्रदायों के बीच आधारभूत भिन्नता साधुओं के वस्त्रों के प्रयोग करने की दृष्टि से कही गई है। श्वेताम्बर साधु सफेद वस्त्र पहनते हैं जब कि दिगम्बर साधु नग्न रहते हैं। इसके अतिरिक्त दिगम्बरों का कथन है कि वास्तविक आगम लुप्त हो चुके हैं लेकिन श्वेताम्बर स्वीकार करते हैं कि मूल आगम 31. Mahāvīra and his Philosophy of life, p. 3 32. Kalpasātra, p. 264 33. History of Jaina Monachism, p. 69 34. The Age of Imperial Unity, p. 412
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Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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