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________________ और बुद्धिमान थे।" याकोबी का कथन है- “ब्रह्मचर्य का व्रत पार्श्व के चार व्रतों में स्पष्टतया उल्लिखित नहीं था किन्तु अव्यक्त रूप से उनके द्वारा प्रस्तावित समझा गया था। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि केवल ऐसे व्यक्ति जो ईमानदारवृत्ति के थे और जल्दी समझने वाले थे चार व्रतों का अक्षरश: पालन करने से वे पथभ्रष्ट नहीं होंगे, किन्तु दूसरे व्यक्ति कामभोग से अलग नहीं रहेंगे क्योंकि कामभोग स्पष्ट रूप से निषिद्ध नहीं किया गया था। मूल पाठ में जो तर्क है वह बताता है साधु संघ के नैतिकता के क्षय को जो पार्श्व और महावीर के बीच के समय में घटित हुआ और यह इस मान्यता के आधार पर संभव है कि अंतिम दो तीर्थंकरों के समय में पर्याप्त अन्तराल व्यतीत हो गया था। और यह बात सामान्य परम्परा के पूर्णतया अनुरूप है कि महावीर पार्श्व के ढाई सौ वर्ष बाद हुए।"16 द्वितीय, आगमिक परम्परा की दृष्टि से महावीर ने नग्नता के आचरण को आरंभ किया। ‘कल्पसूत्र' हमें बताता है कि पूजनीय तपस्वी महावीर ने एक साल और एक महीने के लिए वस्त्र पहने थे; इसके बाद वह नग्न चले और खाली हाथ में भिक्षा को स्वीकार किया। महावीर के पूर्ववर्ती पार्श्व ने शिष्यों को नीचे और ऊपर के वस्त्र पहनने की अनुमति दी।18 'सुत्तपाहुड' में कुन्दकुन्द ने घोषणा की कि तीर्थंकर भी वस्त्रों के प्रयोग से मोक्ष प्राप्त करने में असमर्थ रहेंगे। इस बात से यह सूचना प्राप्त होती है कि किसी भी तीर्थंकर ने साधुओं के लिए वस्त्रों के प्रयोग की अनुमति नहीं दी। यह दृष्टिकोण सुझाता है कि न केवल महावीर बल्कि अन्य सभी (तीर्थंकरों) ने नग्नता का उपदेश दिया। तृतीय, 16. Uttarādhyayana, p. 122., Foot note No. 3 17. Kalpasutra, p. 260 18. Uttarādhyayana, XXIII. 13 19. सुत्तपाहुड, 23 (6) Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004206
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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