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________________ प्रकार के अनर्थदण्ड का वर्णन नहीं करते हैं किन्तु वे यह घोषणा करते हैं कि जो अनर्थदण्डव्रत का पालन कर रहा हो उसे लोहे तथा जाल आदि का व्यापार नहीं करना चाहिए और कुत्ते तथा बिल्ली आदि भी नहीं पालने चाहिए।143 भोगोपभोगपरिमाणव्रत का स्वरूप ____ अब हम भोगोपभोगपरिमाणव्रत के स्वरूप पर विचार करेंगे।144 'भोग' शब्द उन वस्तुओं से सम्बन्धित है जो केवल एक बार ही प्रयोग में लायी जाती हैं उदाहरणार्थ- पान-पत्ती, माला आदि और 'उपभोग' शब्द का सम्बन्ध उन वस्तुओं से है जो बार-बार प्रयोग में लायी जा सकती हैं उदाहरणार्थ- कपड़े, आभूषण, पलंग45 आदि। इस प्रकार भोगोपभोगपरिमाणव्रत का अर्थ हुआ भोग और उपभोग की वस्तुओं के प्रयोग को सीमित करना और उन वस्तुओं से आसक्ति कम करना।146 143. वसुनन्दी श्रावकाचार, 216 144. उपासकदशा, तत्त्वार्थसूत्र तथा श्रावक प्रज्ञप्ति आदि ग्रंथों में इस व्रत का उपभोग-परिभोग-परिमाणवत नाम दिया गया है। यहाँ उपभोग भोग के समान है तथा परिभोग उपभोग के समान है। 145. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 83 अमितगति श्रावकाचार, 6/93 योगशास्त्र, 3/5 .. ... सागारधर्मामृत, 5/14 Yasastilaka and Indian Culture, p.283 146. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 350 रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 82 सर्वार्थसिद्धि, 7/21 सागारधर्मामृत, 5/13 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (137) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004206
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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