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________________ हमारे पास नहीं रह सकती है। बाह्य वस्तुओं के प्रकार के अनुरूप अंतरंग मूर्छा में भेद होता है। दूसरे शब्दों में, मूर्छा में जो आन्तरिक भेद होता है वह बाह्य वस्तुओं के प्रकार से भेद के कारण है। उदाहरणार्थएक हिरण में जो हरी घास पर जीता है उस बिल्ली की तुलना में मूर्छा मन्द होगी जो भोजन के लिए चूहों को मारती है। इस प्रकार बाह्य परिग्रह और अंतरंग मूर्छा एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। परिग्रह और हिंसा परिग्रह कभी भी हिंसा से मुक्त नहीं हो सकता और जो अहिंसा का पालन करना चाहते हैं उनको अंतरंग मूर्छा और बाह्य वस्तुओं को हटाना चाहिए। इसलिए अहिंसा अंतरंग और बाह्य परिग्रह को हटाने की मात्रा के अनुपात में होगी। पूर्ण अनासक्ति के परिणामस्वरूप पूर्ण अहिंसा केवल अर्हन्त के जीवन में ही संभव हो सकती है और इससे नीचे केवल अपरिग्रह की मात्रा ही संभव है। परिग्रहपरिमाणाणुव्रत - गृहस्थ सभी परिग्रह को त्यागने में असमर्थ होता है, अत: उसे मूर्छा से यथासंभव दूर रहना चाहिए और उसी के अनुसार धन-धान्य, दासी-दास और घर आदि के परिग्रह को सीमित करना चाहिए। यह 68. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 121 69. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 124-128 रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 61 वसुनन्दी श्रावकाचार, 213 अमितगति श्रावकाचार, 6/73 कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 340 सागारधर्मामृत, 4/61 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (119) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004206
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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