SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्पत्ति प्राप्त करने से, (स्वतंत्र) राज्य के नियमों की अवहेलना करने से और माप-तौल के झूठे बाँट रखने से दूर रहते हैं। 19 59 अब्रह्म का स्वरूप अब हम अब्रह्म और ब्रह्मचर्याणुव्रत के स्वरूप का वर्णन करेंगे। काम कषाय से सहवास का घटित होना अब्रह्म है। इसमें जीवों की हिंसा के साथ मानसिक जीवन प्रभावित होता है और इसी के साथ द्रव्यप्राण भी प्रभावित होते हैं, क्योंकि सहवास के पश्चात् अकर्मण्यता व तन्द्रालुता उत्पन्न हो जाती है।° ब्रह्मचर्याणुव्रत गृहस्थ कामुक संबंध को पूर्णतया नहीं छोड़ सकता है इसलिए उसको अपनी (स्वतंत्रतापूर्वक) विवाहिता स्त्री के सिवाय अन्य स्त्रियों से कामुक संबंध त्याग देना चाहिए ।" यह ब्रह्मचर्याणुव्रत है या ब्रह्मचर्य का स्थूल रूप है। सोमदेव के अनुसार इस व्रत का स्थूल रूप से पालन करनेवाला अपनी पत्नी के अतिरिक्त अन्य स्त्रियों को माता, बहिन या 59. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 185 रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 58 तत्त्वार्थसूत्र, 7/27 सागारधर्मामृत, 4/50 अमितगति श्रावकाचार, 7/5 Uvāsagadasão I/ 47 चारित्रसार, पृष्ठ 10,11 60. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 109 61. पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, 110 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only (117) www.jainelibrary.org
SR No.004206
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy