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होता है।24 (2) मांसभक्षण- प्रथम, मांस की प्राप्ति प्राणियों का वध किए बिना नहीं हो सकती और प्राणियों की स्वाभाविक मृत्यु से इसे प्राप्त कर भी लिया जाय तो भी उसमें जीवों की स्वाभाविक उत्पत्ति और उनके विनाश के कारण हिंसा अनिवार्य है। द्वितीय, मांस के टुकड़े जो कच्चे हैं या पके हुए हैं या पकाये जाने की प्रक्रिया में हैं उनमें अनवरत जीवों की उत्पत्ति पायी जाती है, परिणामस्वरूप, जो मांसभक्षण की ओर प्रवृत्त है वह जीवों की हिंसा से बच नहीं सकता है।6 (3) मधु- इसका प्रयोग इस आधार पर आपत्तिजनक है कि मधुमक्खियों के जीवन का और मधुमक्खियों के गर्भ में अंडों को घात करके यह प्राप्त किया जाता है और यदि मधु स्वाभाविकरूप से टपकने पर इकट्ठा किया जाय, तो भी उनमें जीवों की स्वत: उत्पत्ति होने से उनकी हिंसा होती है।” (4) पाँच प्रकार के उदुम्बर फल- ये विभिन्न प्रकार के जीवों की उत्पत्ति के आधार हैं और उनका प्रयोग भोजन के लिए और दूसरे उद्देश्यों के लिए जीवहिंसा होने के कारण त्याज्य कहा गया है। उनके सूख जाने पर भी उनके प्रयोग करने से हमारी अत्यधिक आसक्ति के कारण हिंसा होती है।
24. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 63
अमितगति श्रावकाचार, 5/6 सागारधर्मामृत, 2/4,5
Yasastilaka and Indian Culture, p.262 25. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 65, 66
अमितगति श्रावकाचार, 5/14
सागारधर्मामृत, 2/78 26. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 67, 68 27. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 69, 70 28. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 72 29. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 73
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