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________________ हिंसा करके बढ़ाने की बजाय और पशु-जगत और वनस्पति-जगत के साथ निर्दयतापूर्वक बर्ताव करने के बजाय हमको आध्यात्मिक गुरुओं के पवित्र आदेश के अनुसार चलकर जहाँ तक हम कर सके इस अभिशाप को कम करने का प्रयत्न करना चाहिए। ____ अहिंसाणुव्रत का पालन करने के लिए गृहस्थ को मद्य, मांस, मधु और *ऊमर, कठूमर, पाकर, बड़ और पीपल- इन पाँच प्रकार के उदुम्बर फलों के प्रयोग से दूर रहना चाहिए।1 (1) मद्यपान- प्रथम, अहंकार, क्रोध, काम-वासना आदि तीव्र कषायों को उत्पन्न करता है।2 द्वितीय, वह बुद्धि को संवेदनशून्य कर देता है जिससे सद्गुण नष्ट होते हैं और नैतिकरूप से भ्रष्ट हिंसा के कृत्य किए जाते हैं। तृतीय, प्रचुर जीवों की खान होने के कारण मद्यपान आवश्यकरूप से उनके लिए पीड़ादायक 21. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 61,72 सागारधर्मामृत, 2/2 अमितगति श्रावकाचार, 5/1 22. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 64 23. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 62 वसुनन्दी श्रावकाचार, 70,77 अमितगति श्रावकाचार, 5/2 *ऊमर (गूलर) - इसके फल पकने पर नारंगी रंग के जैसे होते हैं। इसमें सदा फल लगे रहते हैं। कठूमर - इसमें अंजीर की तरह बहुत बीज होते हैं। . पाकर - इसके फल छोटे-छोटे पीपल के फल के समान लगते हैं। बड़- इसके फल छोटे-छोटे झरबेर के समान होते हैं। पीपल - यह लता जाति की वनौषधि का फल है। इसकी बेल अन्य लताओं की भाँति विस्तार में नहीं बढ़ती किन्तु थोड़ी ही दूरी में फैलती है। Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (109) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004206
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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