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________________ प्रकार के मद को मन और व्यवहार से मिटा देता है। आठ मद हैं- (1) ज्ञानमद, (2) प्रतिष्ठा या पूजामद, (3) कुलमद, (4) जातिमद, (5) बलमद, (6) ऋद्धिमद या धनमद, (7) तपमद और (8) शरीरमद।100 लोकातीत (निश्चय) दृष्टि से सम्यग्दर्शन के अंग __सम्यग्दर्शन के स्वरूप, इसके अनिवार्य घटक और इसके साथ रहनेवाली विशेषताओं को व्यावहारिक दृष्टिकोण से समझाने के पश्चात् अब हम उनके स्वभाव को लोकातीत (निश्चय) दृष्टि से समझायेंगे। प्रथम, नि:शंकित अंग का धारक स्वयं शुद्धात्मा के स्वभाव के विषय में संदेह रहित रहता है और अपनी आत्मा से सात प्रकार के भय का निष्कासन कर देता है। वह आत्मा में श्रद्धा को दृढ़ करता है। प्रज्ञावान (आत्म-श्रद्धावान) मनुष्य अपनी आत्मा को वास्तविक जगत मानता है। अत: वह विचारता है कि इस जीवनसम्बन्धी भय और भविष्यसम्बन्धी भय बचकाने और झूठे हैं। इसके अतिरिक्त शुद्धात्मा के दृष्टिकोण से वर्तमान जीवन और भविष्य के जीवन में भेद और उससे सम्बन्धित भय भी निराधार और अप्राकृतिक है।102 जो आत्मा को सांसारिक सुख और दुःख से परे समझता है, उसको शाश्वतरूप से अस्तित्ववान मानता है, दर्शन और ज्ञान की संपत्ति को धारण करता है और ज्ञानरूपी प्राणों से जीवित रहता है, दूसरे विभाव गुणों को स्थान नहीं देता है वह व्यक्ति वेदना का भय, सुरक्षा का भय, परिग्रह खोने का भय, मरण का भय और आकस्मिक घटना के भय को मिटा देता है।103 द्वितीय, जो कर्मफल 100. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 25 101. समयसार, 228 102. समयसार, अमृतचन्द्र की टीका, 228 103. समयसार, अमृतचन्द्र की टीका, 228 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (93) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004206
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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