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वात्सल्य अंग का धारक है।% (8) प्रभावना- जो अपने आपको दस धर्मों और तीन रत्नों से सुसज्जित करता है, अध्यात्मधर्म का प्रचार करता है, दान, तप, भक्ति, ज्ञान और दूसरे समयोचित साधनों से उनका प्रसार करता है वह प्रभावना अंग को पालनेवाला होता है।” सम्यग्दर्शन के साथ रहनेवाली विशेषताएँ
आठ अंग जो सम्यग्दर्शन के घटक हैं उनके अतिरिक्त दूसरी भी विशेषताएँ हैं जो सम्यग्दर्शन के साथ रहती हैं। प्रथम, चार विशेषताएँ(1) मन्द कषायों (शुभ भावों) का होना, (2) उन कारणों से हटना जो संसार को बढ़ाते हैं, (3) द्रव्यों के प्रति असंदेहवादी दृष्टि का होना और (4)विश्वजनीन करुणा की अभिव्यक्ति। इन्हें क्रमश: कहा गया है-(i) प्रशम,(i)संवेग, (iii)आस्तिक्य और (iv) अनुकम्पा। सोमदेव कहते . हैं कि सम्यग्दर्शन यद्यपि आत्मा की अवस्था होने के कारण बहुत सूक्ष्म है, परन्तु उसका अनुमान प्रशम, संवेग, आस्तिक्य और अनुकम्पा के आधार से किया जा सकता है। द्वितीय, तीन दूसरी विशेषताएँ हैं जो सम्यग्दृष्टि के द्वारा धारण की जाती है- (1) अपने मन में अपने पापों की निन्दा करना, (2) अपने चरित्र की दुर्बलता गुरु के सामने प्रकट करना और (3) अरहन्तों की भक्ति। इनको क्रमशः निन्दा, गर्दा और भक्ति कहा जाता है। तृतीय, सम्यग्दृष्टि अत्यधिक सावधान होता है इसलिए मद रूपी मैल को अन्दर नहीं आने देता है। इस प्रकार वह आठ 96. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 420 97. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 30
रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 18
कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 421, 422 98. राजवार्तिक, भाग-1, 2/30 99. Yasastilaka and Indian Culture, P. 255
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Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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