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जैन आगमों में यह देदीप्यमान रत्न जो ज्ञान और चारित्र को प्रकाशित करता है विभिन्न प्रकार से समझाया गया है। इसके विभिन्न प्रकारों को निश्चय और व्यवहार के दृष्टिकोण से समझाया जा सकता है। ये आध्यात्मिक नय इतने विस्तृत हैं कि वे सम्यग्दर्शन के विभिन्न प्रतीत होनेवाले लक्षणों में सामञ्जस्य कर सकते हैं, जो विभिन्न आचार्यों द्वारा
जैन इतिहास के विभिन्न कालों में बताये गये हैं। अब हम सम्यग्दर्शन के विविध लक्षणों पर विचार करेंगे। सम्यग्दर्शन के विविध लक्षण
कुन्दकुन्द दर्शनपाहुड में सम्यग्दर्शन के स्वरूप की विशेषता बताते हैं- छह द्रव्यों, नौ पदार्थों, पाँच अस्तिकायों और सात तत्त्वों में दृढ़ श्रद्धा रखना। नेमिचन्द्राचार्य व्यक्त करते हैं- छह द्रव्यों, पाँच अस्तिकायों
और नौ पदार्थों में श्रद्धा सम्यग्दर्शन को बतानेवाली है। मोक्षपाहुड बताता है- अहिंसा धर्म में श्रद्धा, दोषों से रहित देव और केवलज्ञानी का उपदेश सम्यग्दर्शन के सूचक हैं।60 नियमसार बताता है- पूर्ण आत्मा में, आगम में और छह द्रव्यों में श्रद्धा सम्यग्दर्शन के स्वरूप को निर्धारित करती है। इसके अतिरिक्त 'मूलाचार' और 'उत्तराध्ययन' के अनुसार नौ पदार्थों में श्रद्धा सम्यग्दर्शन के स्वरूप को व्यक्त करती है। 62 वसुनन्दी श्रावकाचार के अनुसार- आप्त, आगम और सात तत्त्वों में अविचल
. 58. दर्शनपाहुड, 19
59. गोम्मटसार जीवकाण्ड, 560 60. मोक्षपाहुड, 90 61. Niyamsāra, 5 62. मूलाचार, 203
Uttaradhyayana, 28/14, 15
___Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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