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________________ रायाणासुन्तो, रायाणेहि, रायाणेहिन्तो, रायाणेसुन्तो षष्ठी बहुवचन 6/2 प्राकृत भाषा में पुल्लिंग संज्ञा शब्द राज के षष्ठी विभक्ति बहुवचन में राज के ज का विकल्प से 'ई' करके ण और णं प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं। जैसे राज (पु.) (राई+ण, णं) = राईण, राईणं (षष्ठी बहुवचन) सप्तमी बहुवचन 7/2 प्राकृत भाषा में पुल्लिंग संज्ञा शब्द राज के सप्तमी विभक्ति में राज के ज का विकल्प से 'ई' करके सु और सुं प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं। जैसे राज (पु.) (राई+सु, सुं) = राईसु, राईसुं (सप्तमी बहुवचन) रायेसु, रायेसुं राएसु, राएसुं रायाणेसु, रायाणेसुं अकारान्त से भिन्न अप्प/अत्त (आत्मा) के रूप निम्न प्रकार बनेंगे। अप्प/अत्त (आत्मा) प्रथमा एकवचन 1/1 ____12. प्राकृत भाषा में पुल्लिंग संज्ञा शब्द अप्प/अत्त के प्रथमा विभक्ति .... एकवचन में 'आ' विकल्प से जोड़ा जाता है। जैसे अप्प (पु.) (अप्प+आ) = अप्पा (प्रथमा एकवचन) अत्त (पु.) (अत्त+आ) = अत्ता (प्रथमा एकवचन) अन्य रूप - अप्पो, अप्पाणो अत्तो, अत्ताणो प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-1) (37) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004204
Book TitlePrakrit Hindi Vyakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2012
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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