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________________ सम्मति अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण श्रीमती शकुन्तला जैन ने आपके निर्देशन में अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण की रचना करके हिन्दी भाषियों के लिए अपभ्रंश भाषा सीखने का सुगम मार्ग प्रशस्त किया है। एतदर्थ वे साधुवाद की पात्र हैं। पूर्ववर्ती व्याकरण संस्कृत के माध्यम से सूत्रशैली में होने के कारण सामान्य लोगों के लिए दुरुह रहे हैं। इस कारण अपभ्रंश का पठन-पाठन भी बहुशः बाधित रहा है और उसके अभाव में हिन्दी जगत अपभ्रंश भाषाओं के वाङ्मय में संचित रिक्थ से वंचित ही रहा है। आपने हिन्दी माध्यम से सरल भाषा में अपभ्रंश व्याकरण की रचना प्रस्तुत करके नवीन पद्धति का सूत्रपात किया है। . आचार्य हेमचन्द्र के सूत्रों को ध्यान में रखकर जो यह व्याकरण तैयार किया गया है, उसके द्वारा हिन्दी के विद्यार्थी संस्कृत जाने बिना ही अपभ्रंश सीख सकेंगे, इसमें कुछ भी संदेह नहीं है। पहले संस्कृत सूत्र और उनमें दिए गए पारिभाषिक शब्द समझने तथा उनकी संगति लगाने का श्रम करना पड़ता था। हिन्दी का विद्यार्थी सीधे-सीधे तृतीया विभक्ति तो समझता है किंतु 'टाभ्याम्-भ्यस्' की शब्दावली से उद्वेजित होकर पहले संस्कृत विभक्तियों की पारिभाषिकता में उलझता है, फिर उसके समानांतर अपभ्रंश की विभक्तियाँ मस्तिष्क में उतारता है। इसमें उसे व्यर्थ का श्रम करना पड़ता है। इसलिए वह अपभ्रंश को क्लिष्ट मानकर उसके अध्ययन से विरत हो जाता है। निर्देशन व संपादन- डॉ. कमलचन्द सोगाणी लेखिका- श्रीमती शकुन्तला जैन प्राकृत-हिन्दी-व्याकरण (भाग-1) (179) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004204
Book TitlePrakrit Hindi Vyakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2012
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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