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________________ "दुख" नामक प्रश्न का आर्थिक परिमाण के उपरांत भी एक अन्य पहलू है । उसका नाम है - मानव मन की असीम इच्छाएं । इन इच्छाओं का उर्वीकरण न किया जाये तो 'फॉच्यूँन' पत्रिका के सर्वोच्च धनिकों ‘फाईव हंड्रेड' की लिस्ट में द्वितीय क्रम पर आने वाला धनिक भी प्रथम क्रम पर आने की इच्छा में दुखी होने वाला ही है । इच्छाओं की गुलामी से अंश पर भी मुक्ति प्राप्त कर ले तो वॉयसराय के साथ मीटिंग में पोतडी पहन कर बैठा कोई अर्ध नग्न फकीर भी प्रसत्र रह सकता है। आर्थिक ऊपरी क्रियाओं के सतही परिवर्तन से संतुष्ट विकास - मॉडल और उसके समर्थक लोग इस मॉडल के आर्थिक परिणाम के अतिरिक्त एक अन्य सूक्ष्म परिणाम को देख नहीं सकते । एलोपेथी की गोलियाँ एसीडीटी मिटाने की सच्ची औषधि नहीं है। उसके लिये तो रोगी के आहार - विहार और मनोव्यापार में आमूल - नूल . परिवर्तन लाने की आवश्यकता होती है । दुख भी ऐसा ही है । मात्र रोटी कपडे और मकान मिल जाने मात्र से दुख दूर नहीं होता । धनवान या निर्धन किसी भी दुखी मानव की दृष्टि (दर्शन) के आगे पड़ा मिथ्या मान्यता का पर्दा झटक-पटक कर साफ करने से ही दुख दूर होता है । भौतिक जगत में ही दुख व दुख निवारण के उपाय ढूँढने में अभ्यस्त मानव को मन के भीतर झांकना सीखकर स्वायत्त सुख के आनंद का उपभोग करने में सिद्धहस्त होना पड़ता है। काँटे के नुभने के भय से सारी पृथ्वी को चमड़े से मढ़ देने की आज्ञा देने वाले राजा को बुद्धिमान मंत्री ने पूरो पहाना सिखाया था। उसी तरह वर्तमान राजकुमारों की असीम इच्छायें दिन दूनी और रात चौगुनी गति से बढ़ती जा रही हैं। उन्हें इच्छा मृग - तृष्णा के बंधन से मुक्त करने के लिये फाईव स्टार होटल के एअर कण्डीशन्ड काकेन्स हॉल में प्रवनन या बाजारू पत्र पत्रिकाओं के कॉलम में प्रकाशित उपदेश काम नहीं आते । उनके लिये सर्वप्रथम स्वयं ही . फकीरी चादर ओढ़ कर उदाहरण बन कर बताना पड़ता है । टेक्नोलॉजी इन्द्रजाल में अवस्थित माया नगरी के प्रांत सुख में सुख की अनुभूति करने वालों को संतोप का पाठ पढ़ाना दुरूह कार्य है । उन्हें आपकी बुद्धिमता में विश्वास नहीं है। जब सारा संसार “हेव मोर" 'कल्चर की ओर द्रुतगति से दौड़ रहा है तब 'संतोषी माता की उपासना करने की कथा में वे उसी समय शामिल होने की सोचेंगे यदि कोई स्वयं उदाहरण बन कर उपस्थित हो । विश्वास की कसौटी पर खरा उतरने के लिये "रोल-मॉडल" बनना पड़ता है। “सीइंग इज बिलिविंग" । इस चूहा दौड़ से यदि श्रीमंत व धीमंत हट जायें, तो यह विधडॉअल' अनेकों स्पर्धकों के लिये धक्का बन पुनः विचार का प्रेरणा स्रोत बन जायेगा । परमात्मा महावीर से लेकर विविध दर्शनों के जनक राज्यपाट त्याग कर साधुता के चोले स्वीकार कर लेते थे। इस अभिगम के पीछे ये ही कारण विद्यमान थे । ऐसे क्रांतिदर्शी मनीषियों के रिर्वाण के पश्चात् उनका व उनके मूलभूत संदेशों का स्मरण-कार्य उनकी आकृति, चित्र या मूर्तियाँ कराती हैं । जिनालयों व मंदिरों का यही महत्त्व है । सामान्य ज्वर में भी जहरी मलेरिया की गलत रिपोर्ट देने वाला कमीशन लालची पेथोलोजिस्ट अथवा ब्लू फिल्म की केसेट किराये पर देकर पेट-पालने वाला केवल टी.वी. वाला, चाहे एक रुटिन रिवाज का अनुसरण कर दर्शनार्थ मंदिर चला जाता है। भाग्यवश किसी दिन उसे अपने इष्टदेव की मूर्ति के पृष्ठ-में उपरिधत उस विराट व्यक्तित्व की आभा की याद आ जाती है। उस निर्मल व्यक्तित्व के दर्पण-में-उसे अपने अपकृत्यों के. दाग दिखाई दे जाते हैं। वहीं उसके जीवन में परिवर्तन की संभावना प्रकट हो जाती है। कुंए के जिस मेंढक को स्कूल भौतिक जगत के पार कुछ भी दिखाई नहीं देता, ऐसे लोगों के लिये तो मंदिरजिनालयों के लिये किया गया व्यय धन का धुंआधार अपव्यय मात्र ही है, पर जिन्हें मानव के मनोजगत में घर बना बैठी विसंगतियों में वैश्विक समस्याओं का एक विशिष्ट परिबल दिखाई देता है उनकी दृष्टि में मंदिर व जिनालय मानस निकित्सालय (ओटोट्रीटमेन्ट सेन्टर) ही प्रतीत होते हैं । चरखा बारस (गांधीजी के जन्मदिन) के दिन यदि किसी-किसी को राजघाट की समाधि अथवा आश्रम रोड के मध्य खड़ी गांधी-मूर्ति, गांधीजी के जीवन और संदेश की याद ताजी कराने का निमित्त बन सकती है, तो जगत पूज्य महावीर अधवा कृष्ण मंदिर के लिये भिन्न मापदण्ड क्यों ? कितने ही ले भागू राजनीतिज्ञों ने तो बापू की समाधि पर चढाये जाने वाले पुष्पहारों को अपनी दुर्गन्ध भरी भ्रष्टता को ढकने का साधन बना लिया है । दोष उन ले-भागूओं का है, न कि गांधी समाधि, अर्पित पुष्पहार और बापू की प्रतिमा का । कई ले-भागू भक्त मंदिरों में पूजा, दर्शन और कपाल पर टीके-तिलक कर उसकी ओट में सब प्रकार के अपकृत्यों के आचरण भी करते होंगे। लोंकन उनके पापों के लिये मंदिरों और मूर्तियों पर शब्द-चाबुक के प्रहार तो “मंदिरमूर्ति-दर्शन' नामक एक उदात्त साइको-आध्यात्मिक अनुसंधान के प्रति घोर अन्याय होगा। किसी भी व्यक्ति का रूप (चित्र, आकृति, मूर्ति आदि) उस नाम व रूप के साथ संबंधित सभी पटनाचक्रों को श्रोता या.दर्शक की स्मृति में साकार कर देते _ (44) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004203
Book TitleMananiya Lekho ka Sankalan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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