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अलग अलग देशों की भिन्न भिन्न राजकीय, सामाजिक, आर्थिक व्यवस्थायें, उन प्रजाओं की पोषाकें, रहन-सहन, भाषा, खान-पान, त्यौहार इत्यादि का नाश करके, उसके स्थान पर ईसू के उपदेशों के विरुद्ध काम करनेवाली और पिछले ५०० वर्षों से अस्तित्व में आयी वेटिकन की चर्च संस्था द्वारा निर्धारित सिद्धांतो पर बनी व्यवस्थायें दृढ करने के लिए आज से ५० वर्ष पूर्व 'यूनो' (यूनाइटेड नेशन्स) की स्थापना की गई थी। इस संस्था की स्थापना में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री तथा अमरीकी राष्ट्रपति ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और रशिया के राष्ट्रपति की भी इसमें सहमति थी। यूनो की स्थापना के बाद एक एक करके अनेक राष्ट्रों को उसका सदस्य बना दिया गया, ताकि यूनो के माध्यम से उन देशों की प्रजाओं के जीवन में आमूल परिवर्तन किये जा सके ।
उदाहरण के तौर पर, 'फाओ' (फूड एंड एग्रीकल्चर ऑरगेनाइझेशन) द्वारा तय की गई अन्न नीति विश्व के सभी राष्ट्रों में उन राष्ट्रों के कृषि विभागों द्वारा लागू की जा रही है। इसी तरह से 'यूनो' की अर्थात पश्चिम के श्वेत मुत्सद्दीओं द्वारा विश्व के सभी बच्चों के लिए बनाई गई नीति- 'यूनिसेफ' संस्था के द्वारा सभी राष्ट्रों में क्रियान्वित की जा रही है। इसी तरह 'यूनो' की 'वर्ल्ड हेल्थ ऑरगेनाइझेशन' द्वारा तैयार की गयी स्वास्थ्य नीति तथा “इन्टरनेशनल लेबर ऑरगेनाईझेशन' द्वारा तैयार की गयी श्रमिक नीति का पालन भी सदस्य राष्ट्रों को करना ही पड़ता है।
आज ५० वर्षों में यूनो की संस्था कितनी शक्तिशाली बन चुकी है, इसका अनुभव किया जा सकता है। अश्वेत प्रजाओं के देशों पर यूनो की संस्था गहरा दबाव डाल सकती है। उसके आदेशों की अवगणना करने वालों पर आर्थिक नाकेबंदी बिठायी जाती है। ___अलग अलग राष्ट्रों के राजनैतिक वैश्वीकरण के उद्देश्य को सफल बनाने के बाद 'यूनो' अब आई.एम.एफ. तथा वर्ल्ड बैंक जैसी संस्थाओं के माध्यम से आर्थिक वैश्वीकरण की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है। जिसके फलस्वरूप समस्त विश्व में एक ही प्रकार की नाप-तौल पद्धति दाखिल की गयी है। इसी प्रकार समस्त विश्व में एक ही मुद्रा का प्रचलन हो तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी (यह मुद्रा शायद डॉलर भी हो सकती है) । इसके साथ ही साथ विश्व के सभी राष्ट्रों में हाल में प्रवर्तमान विभिन्न सामाजिक व्यवस्थाओं के स्थान पर 'यूनो' द्वारा तय की गई सामाजिक व्यवस्था लागू हो जायेंगी।
इसके बाद का कदम होगा विश्व के धर्मों के वैश्वीकरण का। इसके लिये यूनो जैसी ही 'यूनाइटेड रिलिजियन्स' (URs) नामक संस्था की स्थापना करने के चक्र गतिमान हो चुके हैं। विभिन्न देशों में प्रवर्तमान धर्म के सिद्धातों, हिंसा-अहिंसा की परिभाषाओं, धार्मिक अनुष्ठानों, धार्मिक विधियों आदि का विनाश करके, उसके स्थान पर वेटिकन संस्था द्वारा तय की जाने वाली धर्म की परिभाषा, धार्मिक विधियाँ, धर्मग्रंथ आदि प्रस्थापित करने के लिए. 'यूनाइटेड रिलिजियन्स' नामक इस नई संस्था का उपयोग करने की गूढ़ योजना है। इस हेतु को फलित करने के लिए विश्व के सभी धर्मों को एक छत्र के नीचे लाने के लिए अब प्रयास होंगें। जिस तरह से राष्ट्रों को यूनो का सदस्य बनाया, उसी तरह प्रत्येक धर्म को 'यूनाइटेड रिलिजियन्स' संस्था के सीधे या परोक्ष रुप से सदस्य बना लिये जायेगें, जिससे उस संस्था के द्वारा तय सिद्धांत सदस्य धर्मों को स्वीकार करने ही पडेगें। ऐसा होने से हाल के धर्मों के अलग अलग अस्तित्व का विनाश हो जायेगा। ___ अतः भारत के सभी धर्मगुरुओं से नम्रतापूर्वक विनंती है कि 'यूनाइटेड रिलिजियन्स' नामक संस्था की स्थापना का तीव्र विरोध करें। इस संस्था की स्थापना के लिए अमरीका तथा रशिया के राष्ट्रपतियों अर्थात राजनैतिक नेताओं ने हरी झंडी दिखायी है। इंग्लैंड के प्रधान मंत्री की भी इस विषय में सहमती है। धार्मिक स्वरुप की संस्था की स्थापना के लिए राजनैतिक नेताओं की सहमति और अनुमोदन क्यों लिया जा रहा है ? सम्मोहित
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