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________________ की रक्षक संस्कृति और व्यवस्था को तोड़ कर, उनकी जगह उपनिवेषवादी रीत-रस्में घुसाई गई हैं। इससे जब भी गोरी प्रजा को भारत में पुन: बसना हो, तब उनकी रीत से सब कुछ यहाँ तैयार मिले। सब जानते हैं कि दरियापार के ब्रिटिश उपनिवेषों के समूहरूप 'कोमनवेल्थ' में भारत के प्रधानमंत्री को समझाकर भारत को उसमें सम्मिलित कर लिया गया है, और इस तरीके से भारत इंग्लैंड का संस्थान है, यह सुनिश्चित करा लिया गया है। इस रीत से भारत भले ही उसके आंतरिक प्रशासन में स्वतंत्र है ऐसा मान लें, तो भी उपनिवेषवादी स्वराज्य प्राप्त कर हम दूसरे तरीके से ज्यादा ही परतंत्र हुए हैं। उपर बताया वैसे भारत की भूमि को (देश को-प्रजा को नहीं) उन्नत करने - ज्यादा लाभदायी बनाने की सिफारिश कर के परदेशी पैसा करोड़ों-अरबों में भारत को दिया गया। बड़ी बड़ी नहरों की योजनाएं अमल में लाई गई। खेती के लिए उपयोगी हों ऐसे केमिकल कारखाने डालने की तैयारियाँ करायी। इसमें से थोड़ा-बहुत' वे स्वयं ही शुरु कर गये थे। बाकी का हमारे द्वारा तैयार कराया। और उस दिशा में प्रेरित होकर हम ऐसी योजनाएं जोर-शोर से अमल में लायें इसलिए भारत को खाद्यान्न की कमीवाला देश दिन ब दिन बनाते गये। आज खाद्यान्न का प्रश्न हमें जिस तरह से सता रहा है, यह देखते हुए 'यो मोर फुड' और एसी अनेक स्कीमों को . अमल में लाने और नहरों के निर्माणकार्य वगैरह शीघ्र करने के लिए हम तनतोड़ महेनत कर रहे हैं, यही उनकी । सिद्धी है। जब जमीन के ऐसे विकास (जो उनके लिए फलदायी होना है), की तरफ हमें घसीटा जा सकता है, तो इस तरह का स्वराज्य देना किसको अच्छा नहीं लगेगा? पर हमारी प्रजा के आदर्श, जीवन प्रणालिका उपनिवेषवादी नीति से काफी भिन्न है। दोनों परस्पर विपरीत दिशा में हैं, और इसलिए ही आज का राजतंत्र लोगों को अनुकूल नहीं है। जिसके परिणाम स्वरूप ही इतना सारा असंतोष व्याप्त है और यह प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। आज के हमारे नेता हमें कहते हैं कि, "अगर सुखी होना हो तो स्थितिचुस्तता छोड़ दो।" उसके सामने प्रजा का यह प्रश्न यह है कि, "थोड़े से सुख के लिए स्थितिचुस्तता छोड़ेंगे तो थोड़े वर्षों तक स्वतंत्र रहेंगे, परंतु आखिरकार जब उपनिवेषवादी नीति शिखर पर होगी, तब सर्वथा नाश से कैसे बच पायेंगे?'' इस तरीके से आज जिस 'स्वराज्य' का हम उपभोग कर रहे हैं वह हमारी स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि : उपनिवेषवादी नीति की योजनाओं पर 'स्वराज्य' का लेबल लगा हुआ संस्थानिक स्वराज्य है। - पंडित प्रभुदास बेचरदास पारेख (जून १९५१ के दिव्य प्रकाश में प्रकाशित मूल गुजराती लेख का हिंदी अनुवाद) Jain Education International For P442 Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004203
Book TitleMananiya Lekho ka Sankalan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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