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Codified laws. राज्यसत्ता भी उसके आगे झुकती है एवं न्याय भी नीचे के स्थान पर है। परन्तु, कानून जो दूसरे विकल्प में शीर्ष पर है, उसे बनाने का अधिकार तो राज्यसत्ता को है, इसलिए वास्तविक रुप से राज्यसत्ता ही सर्वोपरि है, एवं न्याय और कानून दोनों उसकी कठपूतली हैं। वर्तमान में जो स्थिति प्रवृत्त है वह तीसरे विकल्प के अनुसार है।
अपने देश की न्यायपालिका में सुप्रिम कोर्ट का सर्वोच्च स्थान है। लेकिन सुप्रिम कोर्ट के द्वारा दिए गए अनेक फैसलों को राज्यसत्ता ने बाद में संसद में विपरीत कानून बनाकर बदल दिये जाने के किस्से भी हैं। इसलिए यह बात निर्विवाद है कि वर्तमान व्यवस्था में राज्यसत्ता ही सर्वोपरि है।
राज्यसत्ता को कानून बनाने का अधिकार मिला कहाँ से ? राज्यसत्ता विधानसभाओं में और संसद में कानून बनाती है, और ऐसे कानून बनाने की सत्ता के मूल में संविधान को आगे किया जाता है। संविधान किसने और किस सत्ता से बनाया ? संविधान की रचना की संविधान-सभा ने और संविधान सभा की रचना हुई ईंग्लेन्ड की पार्लामेन्ट के द्वारा निर्मित कानून से, ईंग्लेन्ड की पार्लामेन्ट को ऐसे कानून बनाने की सत्ता कहाँ से मिली ? शायद इसका जवाब यह मिले कि भारत इंग्लेन्ड का उपनिवेष राष्ट्र था, इसलिए उसके लिये कानून ईंग्लेन्ड बना सका। परन्तु भारत ईंग्लेन्ड का उपनिवेष राष्ट्र कैसे बना ? यह प्रश्न उन सभी राष्ट्रों के संदर्भ में हो सकता है जो एक समय ब्रिटीश राज्य के गुलाम थे, और अब "कोमन वेल्थ' (सामुहिक सम्पति) के रुप में परोक्ष रीति से ब्रिटन के आज भी गुलाम हैं। ब्रिटन की इस सत्ता का मूल १४९३ में जारी किया गया पोप का फतवा है। उसका लम्बा इतिहास है जिसमें जाने से विषयान्तर होगा।
. फिर से न्याय, कानून और राज्यसत्ता के त्रिकोण की तरफ चलें। राज्यसत्ता की कानून बनाने की सत्ता मर्यादित है या अमर्यादित? संविधान में तीन सूचियों द्वारा - केन्द्र, राज्य और मिश्र - ऐसे कानून बनाने के विषय दर्शाये गए हैं, लेकिन Residuary Powers द्वारा इस सूचि से बाहर रहने वाले सारे विषयों को भी समा लिया गया है। अर्थात् किसी भी विषय पर कानून बनाने की अमर्यादित सत्ता राज्यतंत्र अपने पास रखता है। प्रजा के जीवन के प्रत्येक अंगो को अपने नियन्त्रण में रखने का कानून राज्यसत्ता बना सकती है। सामाजिक, धार्मिक, . राजकीय और आर्थिक, हर एक विषय के लिए राज्य कानून बना सकता और चाहे ऐसे नियमों को लाद सकता है। प्राकृतिक सम्पदाओं को राज्यसत्ता अपनी मालिकी का मान उर के लिए कानून बना सकती है।
.. इस तरह बनाए गए कानूनों को न्याय की दृष्टि से मूल्यांकित करने की और जाँचने - परखने की कोई व्यवस्था नहीं है। इन्कम-टेक्स का कितना दर न्यायी है- १०%, २०%, ५०%, ७०%, ९०%? तो राज्यसत्ता को ठीक लगे वह! कोई व्यक्ति गुनाह करके फरार हो जाए तो उसके निर्दोष परिवारजनों को - पुत्र को, पिता को, भाई को, पति को, पत्नी को लोकअप में बन्द किया जा सकता है ? हाँ, राज्यसत्ता को जैसा ठीक लगे ! सामान्य प्रजा के लिए और राजनीतिज्ञों / राज्यअधिकारीओं के लिए फौजदारी काम चलाने की रीत अलग होनी चाहिए ? हाँ, होनी चाहिए! किस वस्तु पर टेक्स लगना चाहिए - व्यक्ति अपने बैंक खाते से पैसे निकाले, उसके उपर ? एक सज्जन मालिक अपने नौकरों को उदारता से कुछेक सहुलियत दे, उसके उपर ? मांस के उत्पादन को सबसीडी देने के लिए शाकाहारी व्यक्ति पर ? प्रजा की सहमति के बिना जितना चाहे उतना विराट कर्ज - बाह्य व आंतरिक - लेने का कानून या करार करना चाहिए ? ! धर्मक्षेत्र को अपने हस्तगत लेने का कानून बनाना चाहिए ? ! तीर्थों/ मंदिरों को राज्यसत्ता अपने मन मुताबिक, जब चाहे तब, जो भी कारण देकर अपने हस्तगत कर सकती है ? । “जनहित" का लेबल लगाकर कोई भी कदम उठाना क्या मुनासिब है?
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