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प्रथम अध्ययन - श्रमणोपासक आनंद - आनंदजी का अभिग्रह ५५ **-*-12-12-10-28-10-19-12-28-02-08-2-10-19-19-19-19-08-2-9-12-02-28-02-12-**-**-*-**-**-*-12-08-10-14-*-*-*-*-*-*
कठिन शब्दार्थ - पंचाणुव्वइयं - पांच अणुव्रत, सत्तसिक्खावइयं - सात शिक्षाव्रत, दुवालसविहं - द्वादशविध, सावयधम्मं - श्रावक धर्म को, पडिवजइ - स्वीकार करता है, कप्पइ - कल्पता है, अज्झप्पभिई - धार्मिक दृष्टि से, अण्णउत्थिए - अन्ययूथिक, पुरानी प्रति की यह नकल है। यह नकल सोसाइटी ने गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया के बीच में पड़ने पर की थी। सोसाइटी जिस प्रति की नकल कराना चाहती थी, भारत सरकार द्वारा प्रकाशित बीकानेर भण्डार की सूची में उसका १५३३ नम्बर है। सूची में उसका समय १११७ तथा उसके साथ उपासकदशा विवरण नाम की टीका का होना भी बताया गया है। सोसाइटी की प्रति पर फागुन सुदी ६ गुरुवार सं० १८२४ दिया हुआ है। इसमें कोई टीका भी नहीं है। केवल गुजराती टब्बा अर्थ है। उस प्रति का प्रथम और अंतिम पत्र बीच की पुस्तक के साथ मेल नहीं खाता है। अंतिम पृष्ठ टीका वाली प्रति का है। सूची में दिया गया विवरण इन पृष्ठों से मिलता है। इससे मालूम पड़ता है कि सोसाइटी के लिए किसी दूसरी प्रति की नकल हुई है। १११७ संवत् उस प्रति के लिखने का नहीं किन्तु टीका के बनाने का मालूम पड़ता है। यह प्रति बहुत सुन्दर लिखी हुई है। इसमें ८३ पन्ने हैं। प्रत्येक पन्ने में छह पक्तियाँ और प्रत्येक पंक्ति में २६ अक्षर हैं। साथ में टब्बा है। ___(C) यह प्रति कलकत्ते में एक यती के पास है। इसमें ४१ पन्ने हैं। मूल पाठ बीच में लिखा हुआ है और संस्कृत टीका ऊपर तथा नीचे। इसमें संवत् १९१६ फागुन सुदी ४ दिया हुआ है। यह प्रति शुद्ध और किसी विद्वान् द्वारा लिखी हुई मालूम पड़ती है, अन्त में बताया गया है कि इसमें ८१२ श्लोक मूल के और १०१६ टीका के हैं।
(D) यह भी उन्ही यतीजी के पास है। इसमें ३३ पन्ने हैं। ह पंक्ति और ४८ अक्षर हैं। इस पर मिगसर वदी ५, शुक्रवार संवत् १७४५ दिया हुआ है। इसमें टब्बा है। यह श्री रेनी नगर में लिखी गई है। .. (E) यह प्रति मुर्शिदाबाद वाले राय धनपतिसिंहजी द्वारा प्रकाशित है। ___इनके सिवाय श्री अनूप संस्कृत लाइब्रेरी बीकानेर (बीकानेर का प्राचीन पुस्तक भण्डार जो कि पुराने किले में है) में उपासकदशांग की दो प्रतियाँ हैं। उन दोनों में 'अन्नउत्थिपरिग्गहियाणि चेइयाई' पाठ है। पुस्तकों का परिचय F और G के नाम से नीचे दिया जाता है।
(F) लाइब्रेरी पुस्तक नं० ६४६७ (उवासग सूत्र) पन्ने २४ एक पृष्ठ में १३ पंक्तियाँ एक पंक्ति में ४२ अक्षर, अहमदाबाद आंचल गच्छ श्री गुडापार्श्वनाथ की प्रति, पुस्तक में संवत् नहीं है। चौथे पत्र में नीचे लिखा पाठ है - 'अन्नउत्थियपरिग्गहियाई वा चेइयाई' पत्र में बाई तरफ शुद्ध किया हुआ है - 'अन्नउत्थियाई वा अन्नउत्थियदेवयाइं वा' पुस्तक अधिकतर अशुद्ध है। बाद में शुद्ध की गई है, श्लोक संख्या ६१२ दी है।
__ (G) लाइब्रेरी पुस्तक नं० ६४६४ (उपासकदशावृत्ति पंच पाठ सह) पत्र ३३, श्लोक ६००, टीका ग्रन्थान ६०० प्रत्येक पृष्ठ पर १६ पंक्तियां और प्रत्येक पंक्ति में ३२ अक्षर हैं। पत्र आठवें, पंक्ति पहली में नीचे लिखा पाठ है -
'अन्नउत्थियपरिग्गहियाई वा चेइयाई' यह पुस्तक पडिमात्रा में लिखी हुई है और अधिक प्राचीन मालूम पड़ती है। पुस्तक पर संवत् नहीं है।
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