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________________ श्री उपासकदशांग सूत्र e-00-00-00-00-00-00--0-0-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-14 शस्त्र, हरताल, प्राणनाशक इंजेक्शन, गोलियाँ, चूहे मारने की गोलियाँ, खेत में दिये जाने वाले रासायनिक खाद, पाउडर, छिड़कने की डी. डी. टी. आदि पाउडर तथा वे समस्त वस्तुएँ जिनसे प्राणान्त संभव है, पटाखे, बारूद आदि भी बेचना विष-वाणिज्य में गिना गया है। साथ ही कुदाली, हल, फावड़े, गेतियाँ, तगारियां, सेंबल, चूलिए आदि का व्यापार भी विष-वाणिज्य में गिना है। (अभि० भाग ६, पृ० १२५८) १०. केश-वाणिज्य - दास-दासी का क्रय-विक्रय एवं गाय, भैंस, बकरी, भेड़, ऊँट, घोड़े आदि को खरीदने बेचने का धंधा केश-वाणिज्य में लिया गया है। (अभि० भाग ३, पृ०.६६८) ११. यंत्रपीलन-कर्म - मूंगफली, अरण्डी, तिल, सरसों, राई आदि का तेल निकालने की घाणियाँ, घाणे, गन्ने पेरने की घाणी, कुएँ से पानी निकालने के यंत्र आदि इसमें गिने जाते हैं। वैसे तो यंत्र (मशीन) द्वारा. जीवों का जितना पीलन होता है, वे सभी छोटी-बड़ी मिलें, फैक्ट्रियाँ, आरा-मशीन, कारखाने सभी इस यंत्रपीलन-कर्म के ही भेद हैं। १२. निर्लाञ्छन-कर्म - बकरी, भेड़ आदि के कान चीरना, घोड़े, बैल आदि को नपुंसक बनाना, नाक में नाथ डालना, ऊँट के नकेल डालना आदि कार्य। घोड़े के पाँव में खुड़ताल लगाना और डाम देना भी इसमें लिया जाता है। : १३. दवग्निदापनता - वन में सप्रयोजन या निष्प्रयोजन आग लगा कर जलाना। इससे त्रस और स्थावर प्राणियों का महासंहार होता है। . १४. सर-द्रह-तालाबशोषणता - चावल, चने आदि की खेती के लिए अथवा जलाशय को खाली करने के लिए तालाब, तलैया आदि का पानी बाहर निकाल देना, जिससे त्रसस्थावर प्राणियों की घात होती है। १५. असतिजनपोषणता - बाज, कुत्ते आदि पालना, सुरा-सुन्दरी वाले होटल चलना, गुण्डे पालना, फिल्मों अथवा सिनेमा-गृहों को आर्थिक-सहकार आदि, ये सभी कार्य जिनसे दुःशील एवं दुष्टों का पोषण हो। अनर्थदण्ड विरमण के अतिचार तयाणंतरं च णं अणट्ठादण्डवेरमणस्स समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियव्वा ण समायरियव्वा, तंजहा - कंदप्पे, कुक्कुइए, मोहरिए, संजुत्ताहिगरणे, उवभोगपरिभोगाइरित्ते । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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