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________________ ४२ श्री उपासकदशांग सूत्र . २. सचित्त प्रतिबद्धाहार - सचित्त से जुड़े हुए, संघट्टित आहार का प्रयोग। ३. अपक्वौषधि-भक्षणता - अग्नि आदि द्वारा नहीं पकाई गई, अशस्त्रपरिणत, तत्काल पीसी, मर्दन की गई चटनी आदि का भोजन। ४. दुष्पक्वौषधि-भक्षणता - अधकच्चे भुट्टे, सीढ़े आदि खाना। ५. तुच्छौषधि-भक्षणता - फेंकने योग्य अंश अधिक और खाने योग्य कम हो, ऐसे तुच्छ आहार का सेवन। यथा - ईख, सीताफल आदि। इन अतिचारों की कल्पना के पीछे यही भावना है कि श्रमणोपासक भोजन के विषय में जागरूक रहे, रस लोलुपता से सदैव दूर रहे। रसनेन्द्रिय पर विजय प्राप्त करना अत्यंत कठिन है अतः साधक को अत्यंत सावधान रहना चाहिये। कर्म विषयक पन्द्रह अतिचार कर्मादान - कर्म+आदान, कर्म और आदान, इन दो शब्दों से 'कर्मादान' बना है। आदान का अर्थ है - ग्रहण करना। जिन प्रवृत्तियों के कारण ज्ञानावरणीय आदि कर्मों का प्रबल बन्ध होता है। जिनमें बहुत हिंसा होती है उन्हें 'कर्मादान' कहते हैं। अतः श्रावक के लिए ये वर्जित हैं। ये कर्म संबंधी अतिचार हैं। श्रावक को इनके त्याग की स्थान-स्थान पर प्रेरणा दी गई है। श्रावक इन पन्द्रह कर्मादानों का सेवन न करे, न करवावे और करने वालों का अनुमोदन भी न करे। कर्मादानों का विवेचन इस प्रकार है - १. अंगार-कर्म - कोयले बनाना, कुंभकार का धंधा, चूने के भट्टे, सीमेन्ट कारखाने, सुनार, लुहार, भडभुंजे, हलवाई, रंगरेज, धोबी आदि सभी के वे धंधे जिनमें अग्नि के आरम्भ की प्रधानता रहा करती है। २. वन-कर्म - वनस्पति के दस भेद हैं - मूल, कन्द, स्कन्ध, छाल, प्रवाल (कोमल पत्ते रूप) पत्र, पुष्प, फल एवं बीज। इन सबके लिए जो आरम्भ होता है, उस वन विषयक कर्म को 'वन-कर्म' कहा जाता है। यथा - जड़ के लिए धतूरे आदि की खेती, चाय, कॉफी, मेंहदी, फलों के बाग, फूलों के बगीचे, रज के, सरसों, धान आदि की खेती। हरे वृक्ष कटवाना, सुखाना, बेचना या ठेके पर लेना यह सब वन-कर्म हैं। यानी कृषि का वनस्पतिजन्य एवं उपलक्षण से अन्य छह काय का आरम्भ वन-कर्म है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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