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प्रथम अध्ययन - श्रमणोपासक आनंद - व्रतों के अतिचार
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विरुद्ध राज्यातिक्रम, कुडतुल्लकूडमाणे - कूटतुला कूटमान, तप्पडिरूवगववहारे - तत्प्रतिरूपक व्यवहार।
भावार्थ - तदनन्तर श्रावक के तीसरे व्रत - स्थूल अदत्तादान विरमण के पांच अतिचार जानने योग्य हैं, आचरने योग्य नहीं हैं यथा - स्तेनाहृत, तस्करप्रयोग, विरुद्धराज्यातिक्रम, कूटतुलाकूटमान, तत्प्रतिरूपक व्यवहार।
विवेचन - अस्तेय व्रत के पांच अतिचार इस प्रकार हैं - १. स्तेनाहृत - चोर द्वारा अपहृत वस्तु लेना। २. तस्करप्रयोग - चोरी करने का परामर्श देना।
३. विरुद्ध राज्यातिक्रम - राज्याज्ञा के विरुद्ध सीमा उल्लंघन, निषिद्ध वस्तुओं का व्यापार, चुंगी आदि कर का उल्लंघन। .. ४. कूटतुलाकूटमान - खोटे तोल-माप रखना, कम देना, ज्यादा लेना आदि।
५. तत्प्रतिरूपक व्यवहार - अच्छी वस्तु के समान दिखने वाली बुरी वस्तु देना, सौदे या नमूने में बताए अनुसार माल नहीं देना, मिलावट करना आदि। - ये पांचों कृत्य लोभवश किए जाने पर 'अनाचार' की परिधि में चले जाते हैं। बिना लोभ के किसी की आज्ञा के अधीन होकर, उदासीन भाव से या वैसे अन्य कारणों से ही अतिचार रहते हैं।
ब्रह्मचर्य व्रत के अतिचार तयाणंतरं च णं सदारसंतोसिए पंच अइयारा जाणियव्वा ण समायरियव्वा, तंजहा - इत्तरियपरिग्गहियागमणे, अपरिग्गहियागमणे, अणंगकीडा, परविवाहकरणे, कामभोगतिव्वाभिलासे ४। ___ कठिन शब्दार्थ - इत्तरियपरिग्गहियागमणे - इत्वरिक परिगृहीतागमन, अपरिग्गहियागमणेअपरिगृहीतागमन, अणंगकीडा - अनंगक्रीड़ा, परविवाहकरणे - परविवाह करण, कामभोगतिव्वाभिलासे - कामभोगतीव्राभिलाष।
भावार्थ - तदनन्तर श्रावक के चौथे व्रत 'स्वदार-संतोष' के पांच अतिचार जानने योग्य हैं, सेवन करने योग्य नहीं हैं - १. इत्वरिका परिगृहीतागमन २. अपरिगृहीतागमन ३. अनंगक्रीड़ा ४. परविवाहकरण ५. कामभोग-तीव्राभिलाष।
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