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प्रथम अध्ययन - श्रमणोपासक आनंद - व्रतों के अतिचार
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अहिंसा व्रत के अतिचार तयाणंतरं च णं थूलगस्स पाणाइवायवेरमणस्स समणोवासएणं पंच अइयारा पेयाला जाणियव्वा ण समायरियव्वा, तंजहा - बंधे, वहे, छविच्छेए, अइभारे, भत्तपाणवोच्छेए । ___ कठिन शब्दार्थ - बंधे - बन्ध, वहे - वध, छविच्छेए - छविच्छेद, अइभारे - अतिभार, भत्तपाणवोच्छेए - भक्तपान व्यवच्छेद।
भावार्थ - तदन्तर (प्रथम अणुव्रत) स्थूल प्राणातिपातविरमण के पांच प्रधान अतिचार श्रावक को जानने योग्य हैं, किन्तु समाचरण योग्य नहीं। वे ये हैं - १. बंध २. वध ३. छविच्छेद ४. अतिभार और ५. भक्त-पान विच्छेद।
विवेचन - १. बंध - मनुष्य, पशु आदि को सांस लेने में, रक्त संचालन में, अवयव संकोच-विस्तार में, या आहार-पानी करने में बाधा पड़े, इस प्रकार के गाढ़े रस्सी आदि के बंधन से बांधना। तोता-मैना को पिंजरे में बंद करना, बंदी बनाना आदि इस अतिचार के अन्तर्गत है।
२. वध - अंग भग करना. मर्मान्तक प्रहार करना. हड़ी आदि तोड देना. ऐसी चोट जो तत्काल या कालान्तर में मृत्यु अथवा भयंकर दुःख का कारण बने।
३. छविच्छेद - शरीर की चमड़ी, नाक, कान, हाथ, पाँव आदि काटना, नासिका छेदन कर ‘नाथ डालना' सींग-पूँछ आदि काटना, कान चीरना, बधिया करना आदि।
४. अतिभारारोपण - पशु, ताँगा, छकड़ा, गाड़ी, हमाल, ठेला, हाथ-रिक्शा आदि पर उनकी सामर्थ्य से अधिक भार वहन करवाना 'अतिभार' है।
५. भक्त-पान विच्छेद - पशु अथवा मनुष्य आदि को अपराध वश अथवा अन्य कारणों से भोजन पानी समय पर न देना अथवा बिल्कुल बंद कर देना, भोजन करते हुए को काम में लगा कर अंतराय देना आदि भक्त-पान विच्छेद' है।
सत्य व्रत के अतिचार तयाणंतरं च णं थूलगस्स मुसावायवेरमणस्स पंच अइयारा जाणियव्वा ण समायरियव्वा, तंजहा - सहसाब्भक्खाणे, रहसाब्भक्खाणे, सदारमंतभेए, मोसोवएसे, कूडलेहकरणे २।।
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