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श्री उपासकदशांग सूत्र **--*-*--*-00-00-00-0--02-2-8-12-**-*-*-*-*-*--*-*-*-*-*-*-*-08-28-08-08--12-10-08-28-48-28-28-02
समाधान - इसका कारण पुद्गलों में परिवर्तन और जीवों का चयापचय दोनों समझ लेना चाहिए। सर्वज्ञ सर्वदर्शी प्रभु द्वारा केवलज्ञाच से लोक का जो स्वरूप किसी भी पूर्ववर्ती समय में देखा गया है वह उसके उत्तरवर्ती दूसरे समय में नहीं देखा जाता है। जीवाजीव द्रव्यों के गुण, पर्याय एवं क्षेत्र, काल, भाव आदि बदल जाते हैं। अतः जैसा वैभव भगवान् की विद्यमानता में चंपा का था वैसा सुधर्मा स्वामी के पाटवी युग में नहीं था तथा आज यदि वह चम्पा है भी सही तो वैसी की वैसी नहीं है। इसीलिए आगमकार ने चम्पा के लिए ‘थी' पद का प्रयोग किया है।
राजा, नगरी, यक्षायतन, उद्यान आदि का वर्णन श्री औपपातिक सूत्र में दिया गया है। 'वण्णओ' पद के द्वारा वर्णन वहाँ देखने की भलामण दी गई है। जंबू स्वामी की जिज्ञासा और सुधर्मा स्वामी का समाधान
. (२) तेणं कालेणं तेणं समएणं अजसुहम्मे समोसरिए जाव जम्बू पज्जुवासमाणे एवं वयासी-जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं छट्ठस्स अंगस्स णायाधम्मकहाणं अयमढे पण्णत्ते, सत्तमस्स णं भंते! अंगस्स उवांसगदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते? एवं खलु जम्बू! समणेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा - आणंदे १, कामदेवे य २, गाहावइचुलणीपिया ३, सुरादेवे ४, चुल्लसयए ५, गाहावइकुंडकोलिए ६, सद्दालपुत्ते ७, महासयए ८, णंदिणीपिया ६, सालिहीपिया १०। ___ कठिन शब्दार्थ - अज - आर्य-पाप से घृणा करने वाले, समोसरिए - ठहरे, एवं - इस प्रकार, वयासी - कहा, जइ - यदि, भंते - भगवन्, समणेणं भगवया महावीरेणं - श्रमण भगवान् महावीर से-के द्वारा (तीसरी विभक्ति में प्रयुक्त), जाव - यावत्, संपत्तेणं - मोक्ष को संप्राप्त, अयमढे - अयम् अर्थे - यह अर्थ, पण्णत्ते - कहा गया है, के - क्या, अट्टे - अर्थ, अज्झयणा - अध्ययन।
भावार्थ - उस काल उस समय में आर्य सुधर्मा स्वामी का चम्पानगरी के पूर्णभद्र यक्षायतन में पधारना हुआ यावत् जम्बू अनगार भगवान् की विनयपूर्वक पर्युपासना करते हुए इस
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