SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [26] १२२ क्रं. विषय . पृष्ठ | क्रं. विषय ६०. कुण्डकौलिक का प्रश्न १२१ / ८१. अमारि घोषणा और रेवती का पाप १५६ . ६१. देव का उत्तर | ८२. रेवती पति को मोहित करने गई १५६ ६२. देव पराजित हो गया | ८३. अवधिज्ञान का प्रादुर्भाव १५६ ६३. कुण्डकौलिक तुम धन्य हो . १२४ | ८४. तू दुःखी होकर नरक में जाएगी १५६ सातवां अध्ययन १२७-१५१ | ८५. भगवान् गौतमस्वामी को भेजते हैं १६१ ६४. श्रमणोपासक सकडालपुत्र १२७ | ८६. महाशतक तुम प्रायश्चित्त लो . १६३ ६५. सकडालपुत्र को देव संदेश १२६ | नवम अध्ययन १६६-१६७ ६६. सकडालपुत्र की कल्पना ,१३० | ८७. श्रमणोपासक नंदिनीपिता १६६ ६७. भगवान् महावीर स्वामी का पदार्पण १३१ दशम अध्ययन १६८-१६९ ६८. धर्म देशना . १३२ | ८८. श्रमणोपासक सालिहीपिता १६८ ६६. भगवान् और सकडालपुत्र के प्रश्नोत्तर १३३ ८६. उपसंहार १७० ७०. सकडालपुत्र श्रमणोपासक बना १३६ ६०. उपासकदशांग का संक्षेप में परिचय १७१ ७१. अग्निमित्रा श्रमणोपासिका हुई। १३८ १. श्रमणोपासकों के नगर ७२. सकडाल को समझाने गोशालक आया १४१ २. श्रावकों की पत्नियों के नाम १७१ ७३. सकडालपुत्र ने गोशालक को ३. उपसर्ग आदर नहीं दिया ४. स्वर्ग में उत्पन्न हुए उन ७४. स्वार्थी गोशालक भगवान् की विमानों के नाम प्रशंसा करता है ५. गोधन की संख्या १७२ ७५. मैं भगवान् से विवाद नहीं कर सकता १४६ ६. श्रावकों की धन संपत्ति १७२ ७६. मैं तुम्हें धर्म के उद्देश्य से ... ७. उपभोग परिभोग के नियम स्थान नहीं देता ८. अवधिज्ञान का परिमाण १७३ ७७. देवोपसर्ग ६. प्रतिमाओं के नाम आठवां अध्ययन १५२-१६५ परिशिष्ट ७८. श्रमणोपासक महाशतक १५२ / ८१. तुंगिका के श्रमणोपासक १७४ ७६. कामासक्त रेवती की नृशंस योजना १५४ | ६२. श्रमणोपासकों की आत्मिक सम्पत्ति १७५ ८०. रेवती ने सपत्नियों की हत्या कर दी १५५ / ६३. श्री कामदेव जी की सज्झाय १७८ १७१ १७१ १७२ १७२ १७३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy