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________________ [25] पृष्ठ १०४ १०६ क्रं. विषय पृष्ठ | क्रं. विषय १८. प्रवृत्ति से निवृत्ति की ओर ६३ | तृतीय अध्ययन १०१-११० १६. उपासक प्रतिमा |-४०. श्रमणोपासक चुलनीपिता १०१ २०. आनन्दजी ने संथारा किया । | ४१. देवकृत उपसर्ग - पुत्र वध की धमकी १०२ २१. आनन्द श्रावक को अवधिज्ञान ४२. धर्म दृढ़ता १०२ २२. गौतम स्वामी का समागम ४३. ज्येष्ठ पुत्र का वध १०३ आनंद श्रावक का अवधिज्ञान ४४. मंझले एवं छोटे पुत्र का वध १०३ विषयक वार्तालाप ४५. मातृवध की धमकी २४. क्या सत्य का भी प्रायश्चित्त होता है? ७४ ४६. चुलनीपिता का क्षोभ १०५ २५. गौतम स्वामी की शंका का समाधान ७६ ४७. चुलनीपिता देव पर झपटता है १०६ २६. गणधर गौतम की क्षमायाचना ७६३ | ४८. माता की जिज्ञासा २७... समाधि मरण-देवलोक गमन ७८ चुलनीपिता का समाधान १०७ २८. उपसंहार . ' ७६ ५०. व्रत भंग हुआ प्रायश्चित्त लो अध्य यन ८०-१०० ५१. प्रतिमा आराधन २६. श्रमणोपासक कामदेव ५२. भविष्य कथन १०६ ३०. कामदेव की संपदा | चौथा अध्ययन १११-११४ ३१. श्रावक धर्म की आराधना | ५३. श्रमणोपासक सुरादेव १११ ३२. देवकृत उपसर्ग - पिशाच रूप ८१ | ५४. रोगों की धमकी ११२ ३३. हस्ती रूप से घोर उपसर्ग ८७ | पांचवां अध्ययन ११५-११७ ३४. सर्प रूप देव उपसर्ग ६० | ५५. श्रमणोपासक चुल्लशतक ११५ ३५. देव का पराभव ६२ | ५६. धन नाश की धमकी ११६ ३६. इन्द्र से प्रशंसित छठा अध्ययन ११८-१२६ ३७. भगवान् द्वारा कामदेव की प्रशंसा ६६ | ५७. श्रमणोपासक कुण्डकौलिक ११८ ३८. स्वर्ग गमन ६६ | ५८. अशोकवाटिका में साधना रत ११८ ३६. भविष्य कथन ६६ | ५६. नियतिवाद पर देव से चर्चा १११ १०८ १०६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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