SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आठवां अध्ययन श्रमणोपासक महाशतक भ० गौतम स्वामी को भेजते हैं १६१ उवागच्छित्ता ओहय० जाव झियाइ । तए णं सा रेवई गाहावइणी अंतो सत्तरत्तस्स अलसएणं वाहिणा अभिभूया अट्टदुहट्टवसट्टा कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुए णरए चउरासीइवाससहस्सट्ठिइएसु णेरइएसु इयत्ताए उववण्णा । कठिन शब्दार्थ रूट्ठे - रुष्ट, अवज्झाया - दुर्भावना, भीया भयभीत, तत्था त्रस्त, तसिया - व्यथित, उव्विग्गा - उद्विग्न । भावार्थ यह बात सुन कर रेवती को विचार हुआ कि “निश्चय ही महाशत श्रमणोपासक मुझ पर रुष्ट हो गए हैं। उनके मन में मेरे प्रति हीनभाव हो गए हैं। मैं उन्हें अच्छी नहीं लगती। अतः मैं नहीं जानती कि वे मुझे न जाने किस कुमौत से मारेंगे?" ऐसा सोच कर वह भयभीत हो गई, नरक दुःखों के श्रवण से उद्विग्न हो गई और त्रास को प्राप्त हुई । वह धीरे-धीरे पौषधशाला से निकल कर अपने स्थान पर आई तथा आर्त्तध्यान करने लगी। सातवें दिन अलक - विचिका से पीड़ित होकर आर्त्तध्यान करती हुई असमाधिपूर्वक मर कर रत्नप्रभा पृथ्वी के लोलुयच्चुय नरकावास में, चौरासी हजार वर्ष की स्थिति वाले नैरयिक के रूप में उत्पन्न हुई। विवेचन - नोर्ध्वं व्रजति नाधस्तादाहारो न च पच्यते । आमाशयेऽलसीभूतस्तेन सोऽलसकः स्मृतः ॥ खाया हुआ आहार न तो ऊँचा जाता है और न नीचा जाता है, और न पचता है, किन्तु आमाशय में आलसी हो कर पड़ा रहता है, उसे 'अलसक' रोग कहते हैं । इसे विचिका भी कहते हैं। - भगवान् गौतमस्वामी को भेजते हैं (६७) ते काणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे, समोसरणं, जाव परिसा पडिगया । 'गोयमा' इ! समणे भगवं महावीरे एवं वयासी - 'एवं खलु गोयमा ! इहेव रायगिहे णयरे ममं अंतेवासी महासयए णामं समणोवासए पोसहसालाए अपच्छिममारणंतियसंलेहणाए झूसियसरीरे भत्तपाणपडियाइक्खिए कालं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy