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________________ सातवां अध्ययन - श्रमणोपासक सकडालपुत्र - स्वार्थी गोशालक भ०.... १४५ महाधम्मकही?' 'समणे भगवं महावीरे महाधम्मकही' 'से केणटेणं समणे भगवं महावीरे महाधम्मकही?' 'एवं खलु देवाणुप्पिया! समणे भगवं महावीरे महइमहालयंसि संसारंसि बहवे जीवे णस्समाणे विणस्समाणे खज्जमाणे छिज्जमाणे भिजमाणे लुप्पमाणे विलुप्पमाणे उम्मग्गपडिवण्णे सप्पहविप्पणढे मिच्छत्तबलाभिभूए अट्टविहकम्मतमपडलपडिच्छण्णे बहूहिं अटेहि य जाव वागरणेहि य चाउरंताओ संसारकंताराओ साहत्थिं णित्थारेइ, से तेणट्टेणं देवाणुप्पिया! एवं वुच्चइ - समणे भगवं महावीरे महाधम्मकही'। कठिन शब्दार्थ - महाधम्मकही - महाधर्मकथी, महइमहालयंसि संसारंसि - अत्यंत विशाल संसार में, उम्मग्गपडिवण्णे - उन्मार्गगामी, सप्पहविप्पणढे - सत्पथ से भ्रष्ट, मिच्छत्तबलाभिभूए - मिथ्यात्व से ग्रस्त, अट्ठविहकम्मतमपडलपडिच्छण्णे - आठ प्रकार के कर्मरूपी अंधकार पटल के पर्दे से ढके हुए, चाउरंताओ - चार गति रूप, संसारकंताराओ - संसार रूपी भयानक वन से, णित्थारेइ - निकालते हैं। भावार्थ - "हे सकडालपुत्र! क्या यहाँ 'महाधर्मकथी' आए थे?" “कौन महाधर्मकथी?” "श्रमण भगवान् महावीर स्वामी महाधर्मकथी हैं।" "किस प्रकार?" मोशालक उत्तर देता है - “अगाध संसार में बहुत-से जीव नष्ट होते हैं, खेदित होते हैं, छेदित होते हैं, भेदित होते हैं, लुप्त होते हैं, विलुप्त होते हैं, उन्मार्ग में प्रवृत्त होते हैं, सन्मार्ग से भ्रष्ट होते हैं, मिथ्यात्व से पराभूत होते हैं और आठ कर्म रूप महा अंधकार के समूह से आच्छादित होते हैं। उन संसारी जीवों को श्रमण भगवान् महावीर स्वामी धर्मोपदेश दे कर, अर्थ समझा कर, हेतु बता कर, प्रश्न का उत्तर दे कर तथा शंका-शल्य मिटा कर चतुर्गति रूप संसार-अटवी से स्वयं पार पहुंचाते हैं। इसलिए हे सकडालपुत्र! मैं श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को महाधर्मकथी कहता हूँ।" ___ 'आगए णं देवाणुप्पिया! इहं महाणिज्जामए?' से के णं देवाणुप्पिया! महाणिजामए?' 'समणे भगवं महावीरे महाणिजामए।' ‘से केणट्टेणं०?' ‘एवं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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