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________________ १४२ श्री उपासकदशांग सूत्र सकडालपुत्र ने गोशालक को आदर नहीं दिया ___तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए गोसालं मंखलिपुत्तं एजमाणं पासइ, पासित्ता णो आढाइ, णो परिजाणइ, अणाढायमाणे अपरिजाणमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ। कठिन शब्दार्थ - आढाइ - आदर किया, परिजाणाइ - परिचित जैसा व्यवहार किया, अणाढायमाणे - आदर नहीं करता हुआ, अपरिजाणमाणे - परिचित का सा व्यवहार न करता हुआ, तुसिणीए - चुपचाप, संचिट्ठइ - बैठा रहा। भावार्थ - सकडालपुत्र श्रमणोपासक ने मंखलिपुत्र गोशालक को आते देखा तो उसका आदर सत्कार नहीं किया। आदर सत्कार नहीं करते हुए अर्थात् उपेक्षाभाव पूर्वक वह चुपचाप बैठा रहा। स्वार्थी गोशालक भगवान् की प्रशंसा करता है (५६) तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते सद्दालपुत्तेणं समणोवासएणं अणाढाइजमाणे अपरिजाणिजमाणे. पीढफलगसिज्जासंथारट्टयाए समणस्स भगवओ महावीरस्स गुणकित्तणं करेमाणे सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी - 'आगए णं देवाणुप्पिया! इहं महामाहणे?' तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी-'के णं देवाणुप्पिया! महामाहणे?' तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी-'समणे भगवं महावीरे महामाहणे।' 'से केणटेणं देवाणुप्पिया! एवं वुच्चइ-समणे भगवं महावीरे महामाहणे?' 'एवं खलु सद्दालपुत्ता! समणे भगवं महावीरे महामाहणे उप्पण्णणाणदंसणधरे जाव महियपूइए जाव तच्चकम्मसम्पयासंपउत्ते, से तेणटेणं देवाणुप्पिया! एवं वुच्चइ-समणे भगवं महावीरे महामाहणे।' कठिन शब्दार्थ - पीढफलगसिजासंथारट्ठयाए - पीठ-फलक-शय्या तथा संस्तारक की प्राप्ति के लिए, गुणकित्तणं - गुण कीर्तन, आगए - आये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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