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________________ १४० श्री उपासकदशांग सूत्र तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्ठा समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी- 'सद्दहामि णं भंते! णिग्गंथं पावयणं जाव से जहेयं तुब्भे वयह, जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे उग्गा भोगा जाव पव्वइया णो खलु अहं तहा संचाएमि देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडा भवित्ता जाव अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामि। अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेह। कठिन शब्दार्थ - उग्गा - उग्र-आरक्षक-अधिकारी, भोग्गा - भोग-राजा के मंत्री मण्डल के सदस्य। भावार्थ - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अग्निमित्रा को तथा उपस्थित परिषद् को धर्मोपदेश दिया। धर्म सुन कर अग्निमित्रा भार्या ने भगवान् से निवेदन किया - "हे भगवन्! मैं निग्रंथप्रवचन पर श्रद्धा करती हैं, यावत् जैसा आपने फरमाया वैसा ही है, यथार्थ है। जिस प्रकार बहुत से राजा राजेश्वर आपके समीप संयम धारण करते हैं, वैसी मेरी सामर्थ्य नहीं है। मैं आपश्री से पाँच अणुव्रत एवं सात शिक्षाव्रत रूप श्रावक धर्म स्वीकार करूँगी।" भगवान् ने फरमाया - “हे देवानुप्रिया! जैसे सुख हो, वैसा करो, धर्म-कार्य में प्रमाद मत करो।" तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहि(सावग)धम्म पडिवजइ पडिवजित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, दुरुहित्ता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया। तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाइ पोलासपुराओ णयराओ सहस्संबवणाओ उज्जाणाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ। भावार्थ - तब अग्निमित्रा भार्या ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास पांच अणुव्रत, सात शिक्षाव्रत रूप बारह प्रकार का श्रावक धर्म स्वीकार किया, श्रमण भगवान् महावीर स्वामी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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