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________________ १३८ *------0-0-0-0-0-10-10-20-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-0-00-00-00-00-00-00-00 श्री उपासकदशांग सूत्र अग्निमित्रा श्रमणोपासिका हुई (५२) तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया सद्दालपुत्तस्स समणोवासगस्स 'तह'त्ति एयमढं विणएणं पडिसुणेइ। तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - 'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! लहुकरणजुत्तजोइयं समखुरवालिहाणसमलिहियसिंगएहिं जंबूणयामयकलावजोत्त-पइविसिट्ठएहिं रययामयघंटसुत्तरज्जुगवरकं चण-खइयणत्था-पग्गहोग्गहियएहिं णीलुप्पलकयामेलएहिं पवरगोणजुवाणएहिं णाणामणिकणगघंटियाजालपरिगयं सुजायजुगजुत्तउजुगपसत्थसुविरइयणिम्मियं पवरलक्खणोववेयं जुत्तामेव धम्मियं जाणप्पवरं उवट्ठवेह, उवट्ठवेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह'। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति। ___ कठिन शब्दार्थ - लहुकरणजुत्तजोइयं - तेज चलने वाले, समखुरवालिहाणसमलिहिय सिंगएहिं - एक समान खुर, पूंछ तथा अनेक रंगों से चित्रित सींग वाले, जम्बूणयामयकलावजोत्त- पइविसिट्टएहिं - गले में सोने के गहने और जोत धारण किए हुए, रययामय-घण्टसुत्त-रज्जुग-वरकंचण-खइयणत्था-पग्गहोग्गहियएहिं - गले में लटकती चांदी की घंटियों सहित, नाक में उत्तम सोने के तारों से मिश्रित पतली सी सूत की नाथ से जुड़ी रास के सहारे वाहकों द्वारा संभाले हुए, णीलुप्पल कयामेलएहिं - नीले कमलों से बने हुए आभरण युक्त मस्तक वाले, पवरगोणजुवाणएहिं - श्रेष्ठ युवा बैलों से खींचे जाते, णाणामणिकणग-घंटियाजालपरिगयं - अनेक प्रकार की मणियों और सोने की बहुत सी घंटियों से युक्त, सुजाय-जुगजुत्त उज्जुग पसत्थसुविरइय णिम्मियं - बढ़िया लकड़ी के एकदम सीधे, उत्तम और सुंदर बने हुए जुए सहित, पवरलक्खणोववेयं - श्रेष्ठ लक्षणों से युक्त, जाणप्पवरं - यान प्रवर-श्रेष्ठ रथ, उवट्ठवेह - उपस्थित करो, एयं - इस, आणत्तियंआज्ञानुसार, पच्चप्पिणह - प्रत्यर्पित करो। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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