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सातवां अध्ययन श्रमणोपासक सकडालपुत्र
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सकडालपुत्र ने उत्तर दिया- “हे भगवन्! अनुत्थान यावत् अपुरुषकार पराक्रम से बने हैं। इसमें उत्थान यावत् पुरुषकार - पराक्रम नहीं है, क्योंकि सभी भाव नियत हैं । "
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(५०)
तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी 'सद्दालपुत्ता! जइ णं तुब्धं केइ पुरिसे वायाहयं वा पक्केल्लयं वा कोलालभंड अवहरेज्जा वा विक्खिरेज्जा वा भिंदेज्जा वा अच्छिंदेज्जा वा परिट्ठवेज्जा वा, अग्गिमित्ताए वा भारियाए सद्धिं विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरेज्जा, तस्स णं तुमं पुरिसस्स किं दंडं वत्तेज्जासि ?'
भंते! अहं णं तं पुरिसं आओसेज्जा वा हणेज्जा वा बंधिज्जा वा महेज्जा वा तज्जेज्जा वा तालेज्जा वा णिच्छोडेजा वा णिब्भच्छेज्जा वा अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेज्जा । कठिन शब्दार्थ वायायं हवा लगे हुए, पक्केलयं धूप में सुखाए हुए, कोलालभंड - मिट्टी के बर्तनों को, अवहरेज्जा - चुरा ले, विक्खेरेज्जा - बिखेर दे, भिंदेज्जाफोड़ दे, अच्छिंदेज्जा - छेद कर दे, परिट्ठवेज्जा उठा कर बाहर डाल दे, दंड वत्तेज्जासि • दोगे, आओसेज्जा - फटकारूंगा, हणेज्जा - पीदूंगा, बंधेज्जा महेंज्जा - गेंद डालूंगां, तज्जेज्जा- तर्जित करूंगा-धमकाऊंगा, तालेज्जा ताडन-थप्पड़ घूंसे मारूंगा, णिच्छोडेज्जा- धन आदि छीन लूंगा, णिब्भच्छेज्जा - भर्त्सना करूंगा ।
दण्ड, बांध दूंगा,
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भ० और सकडालपुत्र के प्रश्नोत्तर १३५
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भावार्थ तब भगवान् ने सकडालपुत्र से पूछा - "हे सकडालपुत्र ! यदि कोई पुरुष धूप में सूखे हुए इन कच्चे और पके बर्तनों का अपहरण कर ले, बिखेर दे, फोड़ दे, छेद कर दे अथवा फेंक दे और तेरी अग्निमित्रा भार्या के साथ भोग भोगे, तो तुम उस पुरुष को दण्ड दोगे क्या?” तब सकडालपुत्र ने कहा
"हे भगवन्! ऐसे पुरुष पर मैं आक्रोश करूँगा, डण्डे आदि से मारूंगा, रस्सी आदि से बाँधूंगा, पीटूंगा, थप्पड़-मुक्के आदि से ताड़ना - तर्जना करूँगा, उसे फटकारूंगा, तिरस्कार करूंगा यावत् जीवन-रहित कर दूंगा ।
सद्दालपुत्ता! णो खलु तुब्धं केइ पुरिसे वायाहयं वा पवकेल्लयं वा
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