________________
१३४
श्री उपासकदशांग सूत्र
णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी - 'सद्दालपुत्ता! एस णं कोलालभंडे कओ? ।
'तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणं भगवं महावीरं एवं वयासीएस णं भंते! पुव्विं मट्टिया आसी, तओ पच्छा उदएणं णि(मि)गिज्जइ, २त्ता छारेण य करिसेण य एगयओ मीसिज्जइ, मीसिजित्ता चक्के आरोहिजड़, तओ बहवे करगा य जाव उट्टियाओ य कजंति।
कठिन शब्दार्थ - वायाहययं - हवा लगे हुए, कोलालभंडं - मिट्टी के बर्तनों को, अंतो - भीतर से, सालाहितो - कर्म शाला से, णीणेइ - निकालता है, आयवंसि.- धूप में, मट्टिया - मिट्टी, उदएणं - पानी से, णिमिजइ (णिगिजइ) - भिगोया जाता है, छारेण - राख से, करिसेण - गोबर से, मीसिज्जइ - मिलाया जाता है, चक्के - चाक पर, आरोहिजड़ - चढ़ाया जाता है, कजंति - बनाए जाते हैं।
भावार्थ - एक दिन सकडालपुत्र आजीविकोपासक वायु से कुछ सूखे बर्तनों को घर से बाहर निकाल कर धूप में सूखा रहा था। उस समय वहाँ पधारे हुए श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सकडालपुत्र आजीविकोपासक से कहा - 'हे सकडालपुत्र! ये मिट्टी के बर्तन कैसे बने हैं?' ___ तब सकडालपुत्र ने उत्तर दिया - "हे भगवन्! पहले यह सब मिट्टी रूप में थे। उस मिट्टी को पानी में भिगोया जाता है। फिर उसमें राख एवं लीद मिलाते हैं तथा उस पिण्ड को खूब खूदा जाता है, तब उसे चाक पर चढ़ा कर भाँति-भाँति के बर्तन बनाए जाते हैं।" ____तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी - 'सद्दालपुत्ता! एस णं कोलालभंडे किं उठाणेणं जाव पुरिसक्कारपरक्कमेणं कजति, उदाहु अणुट्ठाणेणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं कज्जति?
तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणं भगवं महावीरं एवं वयासी - 'भंते! अणुट्ठाणेणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं णत्थि उट्ठाणे इ वा जाव परक्कमे इवा, णियया सव्वभावा।'
भावार्थ - तब भगवान् महावीर स्वामी ने सकडालपुत्र आजीविकोपासक से पूछा - 'हे सकडालपुत्र! ये मिट्टी के बर्तन उत्थान यावत् पुरुषकार-पराक्रम से बने हैं या (बिना बनाए ही) अनुत्थान यावत् अपुरुषकार-पराक्रम से बने हैं?'
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org