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________________ चउत्थं अज्झयणं - चौथा अध्ययन श्वमणोपासक सुरादेव (३१) उक्खेवओ चउत्थस्स अज्झयणस्स। एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी णामं णयरी। कोट्ठए चेइए। जियसत्तू राया। सुरादेवे गाहावई, अड्डे (जाव. अपरिभूए)। छ हिरणकोडीओ जाव छ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं। धण्णा भारिया। सामी समोसढे। जहा आणंदो तहेव पडिवजइ गिहिधम्म। जहा कामदेवो जाव समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपण्णत्तिं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। ... भावार्थ - चौथे अध्ययन का उत्थान-भगवान् सुधर्मास्वामी फरमाते हैं - हे जंबू! उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी विचर रहे थे, तब वाणारसी नामक नगरी थी, कोष्ठक उद्यान था, जितशत्रु राजा राज्य करते थे, वहाँ 'सुरादेव' नामक गाथापति रहते थे। उनके छह करोड़ का धन निधान में, छह करोड़ व्यापार में तथा छह करोड़ की घर-बिखरी ! थी। दस हजार गायों के एक वज्र के हिसाब से छह वज्र थे। धन्ना नामक पत्नी थी। उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वाणारसी पधारे। आनन्द की भाँति सुरादेव ने भी धर्म सुन कर श्रावक-धर्म स्वीकार किया और कामदेव की भाँति पौषधयुक्त होकर भगवान् की धर्म-प्रज्ञप्ति का पालन करने लगे। . (३२) तए णं तस्स सुरादेवस्स समणोवासयस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतियं पाउन्भवित्था। से देवे एगं महं णीलुप्पल जाव असिं गहाय सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासी-हं भो सुरादेवा समणोवासया! अपत्थियपत्थिया ४ जइ णं तुम सीलाइं जाव ण भंजसि तो ते जे] पुत्तं साओ गिहाओ णीणेमि, णीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएत्ता पंच मंस सोल्लए करेमि, करेत्ता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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